SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश यद्वारत्याः कविः सर्वोऽभवत्संज्ञानपारगः । तं कविनायकं स्तौमि समन्तभद्र-योगिनम् । इसके सिवाय ब्रह्म नेमिदनने अपने पाराधना-कथाकोग' में, गमन्तभद्रकी कथाका वर्णन करते हुए, जब योगिचमत्कारके अनन्तर समन्तभद्र के मुखमे उनके परिचयके दो पद्य कहलाये है तब उन्हें स्पष्ट शब्दोंमें योगीन्द्र लिखा है जैसा कि निम्न वाक्यमे प्रकट है "स्फुटं काव्यद्वयं चेति योगीन्द्र: ममुवाच मः।" ब्रह्म नेमिदत्तका यह कयाकोश प्राचार्य प्रभाचन्द्र के गद्यकथाकोगके प्राधार पर निर्मित हुना है, और इसलिये स्वामी ममभद्रका इतिहास लिम्बते समय मैंने प्रेमीजीको उक्त गद्य कथाकोशपरम ब्रह्ममिदन-गिन कपाका मिलान करके विशेषताओंका नोट कर देनकी प्रेरणा की थी । तदनुसार उन्होंने मिलान करके मुझे जो पत्र लिखा था उसका तुलनामा वाक्योंके माथ उल्नेम्व मैंने एक फुटनोटमे उक्त इतिहासके पृ० १.८५.१०६. पर कर दिया था। उमपरमे मालूम होता है कि--''दोनों कथा प्रोम कोई विशेष फर्क नहीं है। मिदनकी कथा प्रभानन्द्रकी गद्य कथाका प्राय पूगं अनुवाद है । और जो माधारणमा फर्क है वह उक्त फुटनोट में पत्र की पत्नियोंके उद्धरण-दारा अन । प्रस: उम. परमे यह कहने में कोई ग्रापनि मालूम नहा होती कि प्रभानन्द्रा नी ने गए कथाकोशमें स्वामी ममन्तभद्रको योगीन्द्र' रूपम उल्लवित किया है । वकि प्रेमीजीके कथनानुमार * ये गद्यकथाकोगके कर्मा प्रभाचन्द्र भी वे ही प्रभाचन्द्र है जो 'प्रेमेयकमलमानंण्ड' और 'रन्तक रगड-श्रावकाचार' की टीकाके कर्ता है । अत: स्वामी ममन्तभद्रके लिये 'योगीन्द्रः विशेषगणक प्रयोगका अनुमन्धान प्रमंय. कमलमार्तण्डकी रचनाके समय तक अथवा वादिगजमूरिके पाश्वनाथ-ग्निकी रचनाके लगभग पहुँच जाता है। ऐमी हालतमें प्रेमीजीका यह लिखना कि "योगीन्द्र जैमा विशेषण तो उन्हें कहीं भी नहीं दिया गया कुछ भी मंगत मालूम नहीं होता और वह खोजमे कोई विशेष सम्बन्ध न रखना हमा नमती लेखनीका ही परिणाम जान पड़ता है। • देखो, 'जनसाहित्य और इतिहास' १० ३३६
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy