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________________ २४२ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सहन नहीं कर सकते । इस गुटकेके अन्तर्गत स्वयम्भूस्तोत्रके अन्तमें उक्त दोनों यथाक्रम पद्योंके अनन्तर एक तीसरा पद्य और संगृहीत है, जिसमें स्वामीजीके परिचय-विषयक दस विशेषण उपलब्ध होते है और वे हैं-१ प्राचार्य, २ कवि, ३ वादिराट, ४ पण्डित, ५ दैवज्ञ (ज्योतिर्विद्), ६ भिषक् (वैद्य), ७ मान्त्रिक (मन्त्रविशेषज्ञ), ८ तान्त्रिक (तन्त्रविशेषज्ञ), ६ आज्ञासिद्ध और सिद्ध सारस्वत । वह पद्य इस प्रकार है : श्राचार्योहं कविरहमहं वादिराट् पंडितोह दैवज्ञोहं भिषगहमहं मांत्रिकस्तांत्रिकोहं । राजन्नस्यां जलधिवलयामेखलायामिलाया माज्ञासिद्धः किमिति बहुना सिद्धसारस्वताहं ॥३॥ इस पद्यमें वर्णित प्रथम तीन विशेषरग-प्राचार्य, कवि और वादिराट...--- तो पहलेमे परिज्ञान है--अनेक पूर्वाचार्योक वाक्यों, ग्रंथों तथा शिलालेखोमें इनका उल्लेख मिलता है। चौथा पंडित' विशेषग्ण अाजकलके व्यवहारम 'कवि' विशेषण की तरह भले ही कुछ साधारण समझा जाता हो परन्तु उस समय कविके मूल्यकी तरह उसका भी बडा मूल्य था और वह प्रायः गमक (शास्त्रोंके मर्म एवं रहस्यको समझने और दूमगेको ममझाने में निपुण) जैसे विद्वानोंके लिये प्रयुक्त होता था । भगर्वाग्जनमेनाचार्यने प्रादिपारगमे ममन्तभद्रके यशको कवियों, गमकों, वादियों और वाग्मियोंके मस्तकका चडामगि बतलाया है। और इसके द्वारा यह सूचित किया है कि उम ममय जितने कवि, गमकवादी और वाग्मी थे उन सबपर ममन्तभद्रके यगी छाया पडी हुई थी- उनमें कवित्व, गमकत्व, वादित्व और वाग्मित्व नामके ये चारों गुण असाधारगा कोटिके विकासको प्राप्त हुए थे, और इसलिये पडित विशेषरण यहाँ गमकत्व जैसे गुगा विशेषका द्योतक है। शेष सब विशेषण इम पद्यके द्वारा प्राय: नए ही देखो, वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित 'सत्साधुस्मरणमंगलपाठ' में 'स्वामिसमन्तभद्रस्मरण • कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि । यश: सामन्तभद्रीयं मूनि चूगमणीयते ॥
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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