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समन्तभद्रका एक और परिचय-पद्य
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स्वामी समन्तभद्रके आत्म-परिचय-विषयक अभी तक दो ही ऐमे पद्य मिल रहे थे जो राजसभाओंमें राजाको सम्बोधन करके कहे गये है-एक 'पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे मेरी मया नाडिना' नामका है, जो करहाटककी राजसभा
में अपनी पूर्ववाद-घोपरगानोंका उल्लेख करते हुए कहा गया था और दूसरा *. 'काच्यां नग्नाट कोह। इस वाक्यमे प्रारम्भ होता है जो किसी दूसरी राजसभा
में कहा हा जान पड़ता है और जिसमें विभिन्न स्थानोंपर अपने विभिन्न साधु2. वेषोंका उल्लेख करते हुए अपनेको जननिर्गन्थवादी प्रकट किया है और साथ ही : यह चैलेंज किया है कि जिम किसीकी भी वादकी शक्ति हो वह सामने आकर * वाद करे।
हालमे समन्तभद्र-भारतीका संशोधन करते हुए, स्वयम्भूस्तोत्रकी प्राचीन प्रतियोंकी खोजमें, मुझे देहलीके पंचायती मदिरसे एक ऐमा अतिजीर्ण-शीर्ण गुटका मिला है जिसके पत्र उलटने-पलटने आदिकी जरा-सी भी असावधानीको
+ पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे भेरी मया ताडिता,
पश्चान्मालवसिन्धुठक्कविषये कांचीपुरे वैदिशे। प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभट विद्योत्कटं संकटं,
वादार्थी विचराम्यहं नरपते ! शार्दूलविक्रीडितम् ॥ + काच्यां नग्नाटकोऽहं मलमलिनतनुर्लान्बुशे पाण्डुपिड:.
पुण्डोड़े शाक्यभिक्षुदशपुरनगरे मृ(मि)ष्टभोजी परिव्राट् । वाराणस्यामभूवं शशि (श)घरधवलः पाण्डुरांगस्तपस्वी, राजन् ! यस्यास्ति शक्तिः सवदतु पुरतो जैननिर्गन्यवादी ।।
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