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________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश 'विक्रान्त कौरव' के उक्त पद्यमें 'शिवकोटि' के साथ ' शिवायन' नामके एक दूसरे शिष्यका भी उल्लेख है, जिसे 'राजावलिकथे' में 'शिवकोटि' राजाका अनुज (छोटा भाई) लिखा है और साथ ही यह प्रकट किया है कि उसने भी शिवकोटिके साथ समन्तभद्रसे जिनदीक्षा ली थी ; परन्तु शिलालेखवाले पद्य में वह उल्लेख नहीं है और उसका कारण पद्यके अर्थपरसे यह जान पडता है कि यह पद्य तत्त्वार्थसूत्रकी उस टीकाकी प्रशस्तिका पद्य है जिसे शिवकोटि प्राचार्यने रचा था, इसीलिये इसमें तत्त्वार्थसूत्र के पहले 'एतत्' शब्दका प्रयोग किया गया है और यह सूचित किया गया है कि 'इस तत्त्वार्थसूत्रको उस शिवकोटिसूरिने अलंकृत किया है जिसका देह तपरूपी लनाके श्रालम्बनके लिये यष्टि बना हुआ है । जान पड़ता है यह पद्य + उक्त टीका परसे ही शिलालेखमें उद्धृत किया गया है, और इस दृष्टिसे यह पद्य बहुत प्राचीन है और इस बातका निर्णय करनेके लिये पर्याप्त मालूम होता है कि 'शिवकोटि प्राचार्य स्वामी समन्तभद्रके शिष्य थे । । ग्राश्चर्य नहीं जो ये 'शिवकोटि कोई गजा ही हुए । देवागमकी वसुनन्दिवस्ति में मंगलाचरणका प्रथम पद्य निम्न प्रकार में पाया जाता है २२६ सार्वश्री कुलभूषणं क्षरिपु सर्वार्थसंसाधनं सन्नीतेर कलंक भावविधृतेः संस्कारकं सत्पथं । निष्णातं नयसागरे यतिपतिं ज्ञानांशुसद्भास्करं भेत्तारं वसुपालभावतमसो वन्दाम बुद्धये || यह पद्यर्थक है, और इस प्रकारके द्वयर्थक व्यर्थक पद्य बहुधा ग्रन्थों * यथा— शिवकोटिमहाराजं भव्यनप्युदरं निजानुजं वेरस..... संसारशरीरभोगनिवेदि श्रीकंठनेम्वसुनंगे राज्यमनित्तु शिवायन गुडिया मुनिपरल्लिये जिनदीक्षेयनान्तु शिवकोट्याचार्यरागि... | + इसके पहले 'समन्तभद्रस्स निराय जीयात्' और 'स्यात्कारमुद्रितसमस्तपदार्थ पूर्ण' नामके दो पद्य भी उसी टीका जान पड़ते हैं । + नगरताल्लुकेके ३५ वे शिलालेख में भी 'शिवकोटि' भाचार्यको समन्तभद्रका शिष्य लिखा है ( E. C. VIII ) । + व्यर्थक भी हो सकता है, और तब यतिपतिसे तीसरे अर्थ में वमुनन्दीके
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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