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ऐतिहासिक पालोचन स्वामी समन्तभद्रकी 'मस्मक' व्याधि और उसकी उपशान्ति आदिके समर्थनमें जो 'वंद्यो भस्मकभस्मसात्कृतिपटुः' इत्यादि प्राचीन परिचय-वाक्य श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं० ५४ (६.७) परमे इस लेख में ऊपर उद्धत किया गया है उसमें यद्यपि 'शिवकोटि' गजाका कोई नाम नहीं है परन्तु जिन घटनामोंका उसमें उल्लेख है वे 'राजालिकथ' आदिके अनुमार शिवकोटि राजाक 'गिवालय'से ही सम्बन्ध रखती है । 'सेनगगकी पट्टावली' में भी इस विषयका समर्थन होता हैं। उसमें भी 'भीर्मालग' शिवालय में शिवकोटि राजाके ममन्तभद्रद्वारा चमत्कृत
और दीक्षित होनेका उल्लेख मिलता है । माथ ही, उसे 'नवनिलिंग' देशका 'महाराज मूचित किया है, जिसकी गजधानी उस समय संभवत: 'कांची' ही होगी। यथा_ ( स्वस्ति ) नवतिलिङ्गदेशाभिगमद्राक्षाभिरामभीमलिङ्गम्बयंन्वादिस्तोटकोत्कीरण मन्दसान्द चन्द्रिकाविशदयशः श्रीचन्द्रजिनेन्द्रसदर्शनसमुत्पन्नकीतृहलकलितशिवकोटिमहाराजतपाराज्यस्थापकाचार्यश्रीमत्समन्त • भद्रम्वामिनाम "
हमके मिवाय, 'विक्रान्तकोग्व' नाटक और श्रवणबेल्गोलके गिलालेख नं० १०५ (नया नं०२५४) में यह भी पता चलता है कि 'शिवकोटि' समन्तभद्रके प्रधान शिष्य थे । यथा--
शिष्यौ तदीयौ शिवकोटिनामा शिवायनः शास्त्रविदां वरेण्यो। कृत्स्नश्रुतं श्रीगुरुपादमूले ह्यधीतवंती भवतः कृतार्थी ॥x
-विक्रान्तकौरव तस्यैव शिष्यशिवकोटिसूरिः नपालतालम्बनदेहयष्टिः । संसारवाराकरपोतमेतत् तत्त्वार्थसूत्रं तदलंचकार ॥
-श्रवणबेल्गोल-शिलालेख ● 'स्वयं' से 'कीरग' नकका पाठ कुछ अशुद्ध जान पड़ता है। + 'जैनसिद्धान्तभास्कर' किरण १ली, पृ० ३८ । x यह पद्य 'जिनेन्द्रकल्याणाम्युदय'को प्रगस्तिमें भी पाया जाता है।