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________________ २२२ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश एक महाकांतिमान् रत्न कर्दमसे लिप्स होरहा है और वह कर्दम उस रत्नमें प्रविष्ट न हो सकनेसे उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकता , प्रथवा ऐसा जान पड़ता था कि समन्तभद्रने अपनी भस्मकाग्निको भस्म करने - उसे शांत बनानेके लिये यह 'भस्म' का दिव्य प्रयोग किया है । अस्तु । संघको प्रभिवादन करके अब समन्तभद्र एक वीर योद्धाकी तरह कार्यसिद्धिके लिए, 'मरणुत्र कहल्ली' से चल दिये । 'राजावलिकथे' के अनुसार, समन्तभद्र मरणुवकहल्लीसे चलकर 'कांची' पहुँचे और वहां 'शिवकोटि' राजाके पास, संभवतः उसके 'भीमलिग' नामक शिवालयमें ही, जाकर उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया। राजा उनकी भद्राकृति आदिको देखकर विस्मित हुआ और उसने उन्हें 'शिव' समझकर प्रणाम किया । धर्मकृत्यों का हाल पूछे जानेपर राजाने अपनी शिवभक्ति, शिवाचार, मदिरनिर्माण और भीमलिंग मंदिर में प्रतिदिन बारह खंडुग + परिमारण तंडुलानविनियोग करनेका हाल उनसे निवेदन किया । इसपर समन्तभवनं, यह कहकर कि मैं तुम्हारे इस नैवेद्यको निवारण करूंगा.' उस भोजनके साथ मदिरमं अपना प्रासन ग्रहण किया, और किवाड़ बंद करके सत्रको चने जानेकी आज्ञा की । सब लोगोंके चले जाने पर समन्नभने शिवार्थ जठराग्निमें उस भोजनकी आहुतियाँ देनी आरम्भ की और आकृतियां देने देने उस भोजनसँग जब एक कर भी अवशिष्ट नहीं रहा तब आपने पूर्गा तृप्ति लाभ करके, दरवाजा खोल दिया | ग्रन्तःस्फुरितसम्यक्त्वे वहियत कुलिगकः । शोभित महाकान्तिः कर्दमानको मणिर्यथा ॥ - श्राराधना कथाकोश | + 'खंडुग' कितने मेरका होता है, इस विषय में वर्गी नेभिसागरजीनं, पं० शांतिराजजी शास्त्री मैसूरके पत्राधारपर यह सूचित किया है कि बेंगलोर प्रांतमें २०० मेरका, मैसूर प्रांतमें १८० मेरका हेगडेवन कोटमें मेरका और शिमोगा डिस्ट्रिक्ट ६० सेरका खंडुग प्रचलित है, और मेरका परिमाण मंत्र ८० तोलेका है। मालूम नहीं उस समय वाम काचीमें किनने सेरका बग प्रचलित था । संभवतः वह ४० सेरमे तो कम न रहा होगा । + 'शिवारण' में कितना ही गूढ अर्थसंनिहत है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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