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स्वामी समन्तभद्र
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'हिस्टरी माफ़ कनडीज लिटेचर' के लेखक – कनड़ी साहित्यका इतिहास लिखनेवाले मिस्टर एडवर्ड पी० राइस साहब समंतभद्रको एक तेजःपूर्ण प्रभावशाली वादी लिखते हैं और यह प्रकट करते हैं कि वे सारे भारतवर्ष में जैनधर्मका प्रचार करनेवाले एक महान् प्रचारक थे। साथ ही, यह भी सूचित करते हैं कि उन्होंने वादभेरी बजानेके उस दस्तूरमे पूरा लाभ उठाया है, जिसका उल्लेख पीछे एक फुटनोटमें किया गया है, और वे बड़ी शक्तिके साथ जैनधर्मके ' स्याद्वाद - सिद्धान्त' को पुष्ट करनेमें समर्थ हुए हैं ।
यहां तक इस सब कथनसे स्वामी समंतभद्र के असाधारण गुरणों, उनके प्रभाव और धर्मप्रचारके लिये उनके देशाटनका कितना ही हाल तो मालूम हो गया, परन्तु अभी तक यह मालूम नहीं हो सका कि समंतभद्र के पास वह कौनसा मोहन मंत्र था जिसकी वजहमे वे हमेशा इस बात के लिये खुशकिस्मत + रहे हैं कि विद्वान् लोग उनकी वादघोषणाओं और उनके तात्विक भाषग्गों को चुपके से सुन लेते थे और उन्हें उनका प्रायः कोई विरोध करते नहीं बनता था-वादका तो नाम ही ऐसा है जिससे स्वाहमख्वाह विरोधकी आग भड़कती हैं, लोग अपनी मान रक्षा के लिये अपने पक्षको निर्वल समझते हुए भी, उसका समर्थन करनेके
* He ( Samnanthhadra ) was a brilliant disputant, and a great preacher of the Jain religion throughout India........ It was the custom in those days, alluded to by Fa Hian (400) and Hiven Tsang ( 630 ) for a drum to be fixed in a public place in the city, and any learned man, wishing to propagate a doctrine or prove his erudition and skill in debate, would strike it by way of challenge of disputation,... Samantbhadra made full use of this custom, and powerfully maintained the Jain doctrine of Syadvada.
+ मिस्टर प्राय्यंगरने भी आपको 'ever fortunate ' 'सदा भाग्यशाली' लिखा है। S. in S. I. Jainism, 29.