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जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
भी, प्रमाण रूपसे उल्लेख किया गया है । यदि वह परिचय केवल कनड़ीमें ही है तब तो दूसरी बात है, और यदि उसके साथमें संस्कृत पद्य भी लगा हुआ है, जिसकी बहुत कुछ संभावना है, तो उसमें करहाटकसे पहले 'कर्णाट' का समावेश नहीं बन सकता; वसा किये जाने पर छंदोभंग हो जाता है और गलती साफ़ तौर से मालूम होने लगती है। हाँ, यह हो सकता है कि पद्यका तीसरा चरण ही उसमे 'कर्णाटे करहाटके बहुभटे विद्योत्कटे संकटे' इस प्रकार - से दिया हुआ हो । यदि ऐसा है तो यह कहा जा सकता है कि वह उक्त पद्यका दूसरा रूप है जो करहाटकके बाद किसी दूसरी राजसभामें कहा गया होगा । परन्तु वह दूसरी राजसभा कौनसी थी अथवा करहाटके बाद समंतभद्रने और कहाँ कहाँ पर ग्रपनी वादभेरी बजाई है, इन सब बातोंके जाननेका इस समय कोई साधन नहीं है। हां, राजावलिकथे प्रादिसे इतना जरूर मालूम होता है कि समन्तभद्र कौशाम्बी + मरतुवकहल्ली, लाम्बुश ( ? ), पुण्ड्रोडू +, दशपुर और वाराणसी (बनारस) में भी कुछ कुछ समय तक रहे हैं। परन्तु करहाटक
* मेरी इस कल्पनाके बाद, बाबू छोटेलालजी जैन, एम० आर० ए० एम० कलकत्ताने. 'करर्णाटक शब्दानुशासन' की लेविस राइस लिखित भूमिका के श्राधार पर, एक अधूरामा नोट लिखकर मेरे पास भेजा है। उसमें समन्तभद्रके परिचयका डेढ़ पद्य दिया है और उसे 'राजावलिकथे' का बतलाया है, जिसमें एक पद्य तो 'कांच्या नग्नाटकोह' वाला है और बाकीका ग्राधा पद्य इस प्रकार है
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कर्णाटे करहाटके बहुभ विद्योत्कटे संकट
वादार्थं विजहार संप्रनिदिनं गार्दूलविक्रीडितम् ।
+ इलाहाबादके निकट यमुना-तटपर स्थित नगरी । यहाँ एक समय बौद्ध धर्मका बड़ा प्रचार रहा है । यह वत्सदेशकी राजधानी थी ।
+ उत्तर बंगालका पुण्ड्र नगर तथा उड़ उड़ीसा |
ॐ कुछ विद्वानोंने 'दशपुर' को प्राधुनिक 'मन्दसौर ( मालवा ) और कुछने 'धौलपुर' लिखा है; परन्तु पम्परामायण ( ७-३५ ) मे उसे 'उर्जायिनी' के पासका नगर बतलाया है मीर इसलिये वह 'मन्दसौर' ही मालूम होता है ।