SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वामी समन्तभद्र १७३ ( पंजाब ) देश, कांचीपुर ( कांजीवरम् ), और वैदिश ) ( भिलसा ) ये प्रधान देश तथा जनपद थे जहाँ उन्होंने वादकी मेरी बजाई थी और जहाँ पर किसीने भी उनका विरोध नहीं किया था। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि सबसे पहले जिस प्रधान नगर के मध्य में श्रापने वादकी भेरी बजाई थी वह 'पाटलीपुत्र' नामका शहर था, जिसे आजकल 'पटना' कहते हैं और जो मम्राट् चंद्रगुप्त ( मौर्य ) की राजधानी रह चुका है। 'राजावलीकथे' नामकी कनडी ऐतिहासिक पुस्तक में भी समंतभद्रका यह सब ग्रात्मपरिचय दिया हुआ है --विशेषता सिर्फ इतना ही है कि उसमें कहाकमे पहले 'कर्णाट' नामके देशका भी उल्लेख है, ऐसा मिस्टर लेविस राइम साहब अपनी 'इन्स्क्रिप्शन्स ऐट् श्रवणबेलगोल' नामक पुस्तककी प्रस्तावना में सूचित करते हैं। परन्तु इसमें यह मालूम न हो सका कि राजावलीकथेका वह स परिचय केवल कनडीमें ही दिया हुआ है या उसके लिये उक्त संस्कृत पद्यका जैन विद्वानाने 'क' का 'टक्क पाठ बनाकर उसे बंगाल प्रदेशका 'टाका' सूचित किया है, जो ठीक नही है। पंजाब में, 'क' एक प्रदेश है। संभव है उसीकी वजह प्राचीन कालमे सारा पंजाब टक' कहलाता हो, अथवा उस स्वाम प्रदेशका ही नाम टक्क हो जो सिधुके पास है । पद्य में भी 'सिंधु' के बाद एक ही समस्त पटक दिया है इससे वह पंजाब देश या उसका ग्रटकवाला प्रदेश ही मालूम होता है- बंगाल या ढाका नहीं। पंजाब के उस प्रदेशमें 'ठट्टा' प्रादि और भी कितने ही नाम उसी प्रकारके पाये जाते हैं। प्राक्तनविमर्पविचक्षरण राव बहादुर आर० नर्गमहानार एम० To से भी ठक्कको पंजाब देश ही लिखा है । + विदिशाके प्रदेशको वेदिश कहते हैं जो दगा देश की राजधानी थी और जिसका वर्तमान नाम मिलता है। राम साहब ने ' कांचीपूरे बंदिशे का ग्रथं to the out of the way Kanchi किया था जो गलत था और जिसका सुधार श्रवणबेलगोल- शिलालेखोंके संशोधित संस्कररणमें कर दिया गया है। इसी तरह पर प्राय्यंगर महाशयते जो उसका अर्थ in the far off city of Kanchi किया है वह भी ठीक नहीं है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy