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५६ जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश कि इस ग्रंयकी रचना उनके मुनिजीवन में ही हुई है। टीकाकार प्राचार्य क्सुनन्दीने भी, प्रयम पद्यकी प्रस्तावनामें 'श्रीसमन्नभद्राचार्यविरचित' लिखनेके अतिरिक्त, ८४ वें पद्यमें आए हुए 'ऋद्ध' विशेषणका अर्थ 'वृद्ध' करके, और११५ वें पद्यके 'वन्दीभूतवतः' पदका अर्थ 'मंगलपाठकीभूतवतोपि नग्नाचार्यरूपेण भवतोपि मम' ऐसा देकर, यही सूचित किया है कि यह ग्रंथ समन्तभद्र के मुनिजीवनका बना हुआ है । अस्तु ।
स्वामी समन्तभद्रने गृहस्थाश्रममें प्रवेश किया और विवाह कराया या कि नहीं, इस बात के जाननेका प्रायः कोई साधन नहीं है । हो, यदि यह सिद्ध किया जा सके कि कदम्बवंशी राजा शान्तिवर्मा और शान्तिवर्मा ममंतभद्र दोनों एक ही व्यक्ति थे तो यह सहजही में बतलाया जा सकता है कि प्रापने गृहस्थाश्रमको धारण किया था और विवाह भी कराया था। साथ ही, यह भी कहा जा सकता कि अापके पुत्रका नाम मोशवर्मा, पौत्रका रविवर्मा, प्रपौत्रका हरिवर्मा और पिताका नाम कास्यवर्मा था; क्योंकि काकुत्स्थवर्मा, मृगेशवर्मा और हरिवर्माके जो दानपत्र जैनियों अथवा जैनसंस्थानोंको दिये हा हलमी और वैजयन्ती के मुकामोंपर पाये नाते हैं उनमे इस वंशारम्पराका पता चलता है । इसमें संदेह नहीं कि प्राचीन कदम्बवंगी राजा प्राय: सब जैनो 'हए है और दक्षिण (बनवास ) देशके राजा हा है; परंतु इतने परमे ही, नाममाम्यके कारण, यह नहीं कहा जा मकता कि शांतिवर्मा कदम्ब और शांतिवर्मा ममंतभद्र दोनों एक व्यक्ति थे। दोनोंको एक व्यक्ति मिद्ध करनेके लिये कुछ विशेष साधनों तथा प्रमाणोंकी जरूरत है, जिनका इसममय अभाव है। मेरी गयमें, यदि ममंतभद्रने विवाह कराया भी हो तो वे बहुत समय तक गृहस्थाश्रममें नहीं रहे है, उन्होंने जल्दी ही थोडी अवस्थामें, मुनि-दीक्षा धारणा की है और नभी वे उम अमाधारण योग्यता और महनाको प्राप्त कर सके है जो उनकी कृतियों तथा दूसरे विद्वानोंकी कृतियोंमें उनके विषयके उल्लेखवाक्योंसे पाई जाती है और जिसका दिग्दर्शन आगे चल कर कराया जायगा। ऐमा मालूम होता है कि
48 देवो 'स्टडीज़ इन साउथ इंडियन जैनिज्म' नामकी पुस्तक, भाग दूमग पृष्ठ ८७॥