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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
किसी तीसरे ही सम्प्रदायसे सम्बन्ध रखते हैं अथवा सूत्रकार तथा भाष्यकारके निजी मतभेद हैं । और इसलिये उक्त दोनों दावे तथ्यहीन होनेसे मिथ्या हैं । आशा है विद्वज्जन इस विषय पर गहरा विचार करके अपने-अपने अनुभवोंको प्रकट करेंगे । ज़रूरत होनेपर जाँच-पड़तालकी विशेष बातोंको फिर किसी समय पाठकोंके सामने रक्खा जायगा ।
की खोज' नामका वह निबन्ध देखना चाहिये जो चतुर्थ वर्षके 'अनेकान्त' को प्रथम किरण में प्रकाशित हुआ है ।