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________________ स्वामी समन्तभद्र प्रास्ताविक जैनसमाजके प्रतिभाशाली प्राचार्यों, समर्थ विद्वानों और सुपूज्य महात्माओंमें भगवान् समन्तभद्र स्वामीका आसन बहुत ऊँचा है। ऐसा शायद कोई ही प्रभागा जैनी होगा जिमने आपका पवित्र नाम न मुना हो; परन्तु समाजका अधिकांश भाग ऐमा ज़रूर है जो आपके निर्मल गुगगों और पवित्र जीवनवृत्तान्तोंसे बहुत ही कम परिचित है-बल्कि यों कहिये कि अपरिचित है। अपने एक महान् नेता और ऐसे नेताके विषयमें जिसे 'जिनशासनका प्रणेता*'नक लिखा है समाजका इतना भारी अज्ञान बहुत ही स्वटकता है। मेरी बहुन दिनोंसे इस बातकी बराबर इच्छा रही है कि प्राचार्यमहोदयका एक सच्चा इतिहासउनके जीवनका पूरा वृतान्त--लिम्बकर लोगोंका यह अज्ञानभाव दूर किया जाय । परन्तु बहुत कुछ प्रयन्न करने पर भी मैं अभी तक अपनी उस इच्छाको पूरा करनेके लिये ममर्थ नहीं हो सका। इसका प्रधान कारण यथेष्ट माधनसामग्रीकी अप्राति है । ममाज अपने प्रमादमे, यद्यपि, अपनी बहुतमी ऐतिहामिक सामग्रीको खो चुका है फिर भी जो अवशिष्ट है वह भी कुछ कम नहीं है। परन्तु वह इतनी अस्तव्यस्त तथा इधर उधर बिखरी हुई है और उसको मालूम करने तथा प्राप्त करने में इतनी अधिक विघ्नबाधाएँ उपस्थित होती है कि उसका होना नहोना प्रायः बराबर हो रहा है। वह न तो अधिकारियोंके स्वर्य उपयोगमे आती है, न दूसरोंको उपयोगके लिए दी जाती है और इसलिए उमकी दिनपर दिन तृतीया गति (नष्टि ) होती रहती है, यह बड़े ही दुःखका विषय है ! * देखो, श्रवणबेल्गोलका शिलालेख नं० १०८ (नया नं०२५८)।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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