SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वे तत्त्वार्थसूत्र और उसके भाष्यकी जांच १३७ "लोकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम्" यह एक विशेषसूत्र लोकान्तिक देवोंकी आयुके स्पष्ट निर्देशको लिये हुए है। (६) चौथे अध्यायमें,देवोंकी जघन्य स्थितिका वर्णन करते हुए, जो ४२वां सत्र दिया है वह अपने भाष्यसहित इस प्रकार है “परतः परतः पूर्वा पूर्वानन्तरा ॥४२॥" माष्य-"माहेन्द्रात्परतः पूर्वापराऽनन्तरा जघन्या स्थितिर्भवति । तद्यथा । माहेन्द्र परा स्थितिविशेषाधिकानि सप्तसागरोपमाणि सा ब्रह्मलोके जघन्या भवति । ब्रह्मलोके दशसागरोपमाणि परा स्थितिः सा लान्तवे जघन्या । एवमासर्वार्थसिद्धादिति ।" यहां माहेन्द्र स्वर्गमे बादके वैमानिक देवोंकी स्थिति का वर्णन करते हुए यह नियम दिया है कि अगले अगले विमानोंमे वह स्थिति जघन्य है, जो पूर्व पूर्वके विमानोंमें उत्कृष्ट कही गई है, और इस नियमको सर्वार्थमिद्ध विमानपर्यन्त लगाने का आदेश दिया गया है। इस नियम और आदेशके अनुमार सर्वार्थसिद्ध विमानके देवोंकी जघन्यस्थिति बत्तीस सागरकी और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरकी ठहरती है। परन्तु अागममें मार्थमिद्धकं देवोंकी स्थिति एक ही प्रकारकी बतलाई है- उममे जघन्य उत्कृष्टका कोई भेद नहीं है, और वह स्थिति तेतीम मागरकी ही है; जैसा कि श्वे० आगमके निम्न वायोमे प्रकट है - "सवट्ठसिद्धदेवारणं भंते ! केवतियं कालं ठिई पएणना ? गोयमा ! अजहण्णुकोसंण तिनीसं सागरोवमाई ठिई पगत्ता।" -प्रज्ञा० प० ४ सू. १०२ "अजहएणमणुक्कोसा तेत्तीसं सागरोपमा । महाविमाणे सव्वट्ठोठिई एसा वियाहिया ॥२४॥ -उत्तराध्ययनसूत्र अ०३६ और इसलिए यह स्पष्ट है कि भाष्यका 'एवमासर्वार्थसिद्धादिति' वाक्य श्वे प्रागमके विरुद्ध है। सिद्धसेनगणीने भी इसे महसूस किया है और इसलिये वे अपनी टीकामें लिखते है ___ "तत्र विजयादिषु चतुपु जघन्येनैकत्रिंशदुत्कण द्वात्रिंशत् सर्वार्थसिद्ध त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यजघन्योत्कृष्टा स्थितिः। भाष्यकारेण तु
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy