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________________ १३४ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश तत्त्व अथवा पदार्थ नव बतलाए हैं, जैसा कि 'स्थानांग' श्रागमके निम्न सूत्रसे प्रकट है : "नव सब्भावपयत्था पण्णत्ते । तं जहा जीवा अजीवा पुरणं पावो आसव संवरो निज्जरा बंधो मोक्खो ।" (स्थान ६ सू० ६६५) सात तत्त्वोंके कथनकी शैली श्वेताम्बर श्रागमोंमें है ही नहीं, इसी से उपाध्याय मुनि आत्मारामजीने तत्वार्थंसूत्रका श्वे० श्रागमके साथ जो समन्वय उपस्थित किया है उसमें वे स्थानाँगके उक्त सूत्रको उद्घृत करनेके सिवाय आगमका कोई भी दूसरा वाक्य ऐसा नहीं बतला सके जिसमें सात तत्त्वोंकी traint स्पष्ट निर्देश पाया जाता हो । सात तत्त्वोंके कथनकी यह शैली दिगम्बर है - दिगम्बर सम्प्रदाय में साततत्त्वों और नव पदार्थोंका अलग अलग रूपसे निर्देश किया है* । दिगम्बर-सूत्रपाठ में यह सूत्र स्थित है । श्रत: इस चौथे सूत्रका आधार दिगम्बरश्रुत जान श्वेताम्बरश्रुत नहीं । भी इसी रूपसे पड़ता है -- (३) प्रथम अध्यायका आठवां सूत्र इस प्रकार है सत्संख्याक्ष त्रस्पर्शनकालान्तरभावात्पबहुत्वैश्च । इसमें सत् संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व इन आठ अनुयोगद्वारोंके द्वारा विस्तारसे अधिगम होना बतलाया है; जैसा कि भाष्यके निम्न अंग भी प्रकट है "सत् संख्या क्षेत्रं स्पर्शनं कालः श्रन्तरं भावः अल्पबहुत्वमित्येतैश्च सद्भूतपदप्ररूपणादिभिरष्टाभिरनुयोगद्वारैः सर्वभावानां (तस्वानां) विकल्पशो विस्तराधिगमो भवति ।" परन्तु श्वेताम्बर श्रागममें सत् आदि अनुयोगद्वारोंकी संख्या नव मानी है'भाग' नामका एक अनुयोगद्वार उसमें और है; जैसा कि अनुयोगद्वारसूत्रके निम्न वाक्यसे प्रकट है, जिसे उपाध्याय मुनि श्रात्मारामजीने भी अपने उक्त 'तत्त्वार्थ सूत्र - जैनागम समन्वय' में उद्धृत किया है * सव्वविरओ वि भावहि राव य पयत्थाई सत्ततबाई । - भावप्राभृत ६५ -
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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