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________________ श्वे० तत्स्वार्थसूत्र और उसके भाष्यकी जाँच १३३ कि उसके निर्माण का आधार पूर्णत: श्वेताम्बर आगम नहीं है, और इस लिये दावा मिथ्या है । श्वेताम्बरीय सूत्रपाठ और उसके भाष्य में ऐसे अनेक स्थल है जो श्वे० प्रागमोंके साथ मतभेदादिको लिये हुए हैं। नीचे उनके कुछ नमूने प्रकट किये जाते है: (१) श्वेताम्बरीय आगममें मोक्षमार्गका वर्णन करते हुए उसके चार कारण बतलाये हैं और उनका ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, इम क्रममे निर्देश किया है। जैमाकि उत्तराध्ययन सूत्रके २८ वें अध्ययनकी निम्न गाथाओंमे प्रकट है मोक्खमम्ग गई तच्च सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदंमणलवस्त्रणं ।।१।। नाणं च सणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मात्तिपएणत्तो जिणेहिं वरदंमहि ।। ।। नाणं च ईमणं चेव, चरित्तं च तवो नहा । वयं मम्गमुप्पत्ता, जीवा गच्छति सोग्गइ ।। ३ ।। नाणेण जाणई भावे इंसणेण य महहे । चरित्तण निगिहाइ तवेग परिसुझाई ।। ३५ ।। परन्तु श्वेताम्बर-मृत्रपाठमें, दिगम्बर मूत्रपाठकी नरह, तीन कारणोंका दर्शन-ज्ञान-चारित्रके क्रमन निर्देश है; जैसा कि निम्न मूत्रमे प्रकट है मम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ।। १ ।। अतः यह मत्र श्वेताम्बर आगमके माथ पूर्णतया मगत नहीं है। वस्तुतः यह दिगम्बरमत्र है और इसके द्वारा मोक्षमार्गके कथनकी उम दिगम्बर शैलीको अपनाया गया है जो श्रीकुन्दकुन्दादिके ग्रथोंमें मवंत्र पाई जाती है। (२) श्वेताम्बरीय मूत्रपाठक प्रथम अध्यायका चौथा मूत्र इस प्रकार है - जीवाऽजीवात्रवबन्धसंवरनिजरामाक्षास्तत्वम् । इसमे जीव, अजीव, आम्रव, बन्ध, सवर, निर्जरा और मोक्ष, ऐसे सात तत्वोंका निर्देश है। भाप्यमे भी "जीवा अजीवा आस्रवा बन्धः संवरो निजरा मोक्ष इत्येष सप्तविधोऽर्थस्तत्त्वम् एते वा सप्तपदार्थान्तत्त्वानि" इन वाक्योंक द्वारा निर्दश्य तत्त्वोके नामके साथ उनकी सग्या सात बतलाई गई है, और तत्त्व तथा पदार्थको एक सूचित किया है । परन्तु श्वेताम्बर आगममें
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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