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ferent एक सटिप्पण प्रति
परमेतावचतुरैः कर्तव्यं शृणुत वच्मि सविवेकः । शुद्धो योस्य विधाता स दूषणीयो न केनापि ||४|| टिप्प० - "एवं चाकर्ण्य वाचको मास्वातिर्दिगम्बरो निह्नव इति केचिन्मात्रदन्नदः शिक्षार्थं 'परमेतावश्चतुरैरिति' पद्यं ब्रमहे - शुद्धः सत्यः प्रथम इति यावद्यः कोप्यस्य ग्रंथस्य निर्माता स तु केनापि प्रकारेण न निंदनीय एतावचतुरैर्विधेयमिति ।"
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भावार्थ - ऊपर की बातको सुनकर 'वाचक उमास्वाति निश्चयसे दिगम्बर निह्नव है ऐसा कोई न कहे, इस बातकी शिक्षाके लिये हम 'परमेतावच्चतुरैः' इत्यादि पद्य कहते हैं, जिसका यह आशय है कि 'चतुरजनों को इतना कर्तव्य पालन जरूर करना चाहिये कि जिससे इस तत्त्वार्थशास्त्रका जो कोई शुद्ध विधाता — प्राद्यनिर्माता है वह किसी प्रकारसे दूपणीय - निन्दनीय - न ठहरे ।
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यः कुन्दकुन्दनामा नामांतरितो निरुच्यते कैश्चित् । ज्ञेयोऽन्य एव सोऽस्मात्स्यप्रमुमास्वातिरिति विदितात् ||५|| टिप्पर- कुन्दकुन्द एवैतत्प्रथमकर्तेति संशयापोहाय स्पष्टं ज्ञापयामः 'यः कुन्दकुन्दनामेत्यादि । अयं च परतीर्थिकैः कुन्दकुन्द इडाचार्यः पद्मनदी उमास्वातिरित्यादिनामांताराणि कल्पयित्वा पश्यत संSस्मात्प्रकरकतु रुमास्वातिरित्येव प्रसिद्धनाम्नः सकाशादन्य एवं ज्ञेयः किं पुनः पुनर्वेदयामः ।"
भावार्थ- - तब कुन्दकुन्द ही इस तत्त्वार्थशास्त्रके प्रथम कर्ता है, इस संशयको दूर करनेके लिये हम 'यः कुन्दनामेत्यादि' पद्यके द्वारा स्पष्ट बतलाते हैं। कि-- पर तीर्थिकों (!) के द्वारा जो कुन्दकुन्दको कुन्दकुन्द, इडाचार्य (?) पद्मनन्दी उमास्वाति इत्यादि नामान्तरोंकी कल्पना करके उमास्वाति कहा जाता है
ॐ जहाँ तक मुझे दिगम्बर जैनसाहित्यका परिचय है उसमे कुन्दकुन्दाचार्यका दूसरा नाम उमास्वाति है ऐसा कहीं भी उपलब्ध नहीं होता । कुन्दकुन्दके जो पाँच नाम कहे जाते हैं उनमें मूल नाम पद्मनन्दी तथा प्रसिद्ध नाम कुन्दकुन्दको छोड़कर शेष तीन नाम एलाचार्य, वक्रप्रीव और गृद्धपिच्छाचार्य