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________________ जैन जगत् के उज्ज्वल तारे - में बाधक बने । उन्होंने अपने शिक्षा-गुरू, नमूची पर इस भावी घटना को प्रकट कर दिया। नमूची का दिल, एक बार फिर दहल उठा । वह सजग हो कर, वहाँ से भाग निकलने. की चेष्टा करने लगा। और, अन्त में एक दिन, वह वहाँ से, अवसर पाकर भाग भी निकला। चलते-चलते वह हस्तिनापुर में जा निकला। और, वहाँ के महाराज सनत्कुमार चक्रवर्ती का वह मन्त्री बन बैठा। इधर, चित्त और सम्भूत, जिन्हें नमूची ने संगीत-कला का गम्भीर ज्ञान करवा दिया था, रोज़ गातेगाते गाँव में निकलने लगे। संगीत, एक ऐसी कला है, जिस के द्वारा, बड़े-बड़े द्रुत-गामी और हिंसक प्राण तक, सरलता पूर्वक वश में किये जा सकते हैं । इसी के प्रताप से, मुर्दा दिलों में संजीवनी शक्ति का संचार किया जा सकता है। कायरों को तोप के लपलपाते मुँह के सामने ला कर खड़ा किया जा सकता है । और, कठिन से कठिन सांसारिक यातनाओं को, कुछेक काल के लिए, प्रायः भुला-सा दिया जा सकता है। संगीत - कारों की रोज़ी है; और दुखियों की करारी है । पाश्चात्य देशों की अनेकों बड़ी-बड़ी शिक्षण-संस्थाओं में, संगीत ही एक ऐसी प्राण-प्रद वायु है. जिस के द्वारा वहाँ के गँदले से गैंदले वातावरण को,बात की बात में शुद्ध बनाया जाता है। वह संगीत ही है, जिस से अन्धे लोग, सूरदास कहलाते हैं। और, गुंडे से गुंडे भी तानसेन के पवित्रतम पद पर चैठाये जाते हैं। अनेकों कुलटा नारियाँ और बेश्याएँ तक, वीणा-पाणि सरस्वती की साथिन, एक-मात्र इसी संगीत की कृपा से वन चैठती है । सेगीत, वह जादू है, जिस के इल, हज़ारो प्राणी,, वात कीवात में, अपनी ओर खिचे चले आते हैं। उस समय, उन्हें अपने काम और कर्तव्य का कोई भान ही नहीं रहता। अस्तु । संगीत [६०]
SR No.010049
Book TitleJain Jagat ke Ujjwal Tare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPyarchand Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1937
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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