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वित थार सम्भून
सीमा न रही। उन्होंने तत्काल ही उसे प्राण दराड की सज़ा ही । यह कार्य, इन्द्रभूत नामक एक मातंग ( श्वपच ) का दिया गया
काम, क्रोध और लोभ के अनुचित उपयोग से, पुरुष अपने लिए, नर्क का द्वार सदा के लिए खोल देता है । मातंग को धन का लोभ दिखाया गया । और और शर्तें भी नसूची से उसने कीं । बस उसका प्राण बचा लिया गया । नसूत्री ने मातंग के चित्त और सम्भूत दोनों पुत्रों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी अपने सिर कन्धों पर ली । वह अब लुक-छिप कर, मातंग के घर में रहता हुआ, अपने जीवन के अन्तिम दिन विताने लगा। थोड़े ही समय में, दोनों बालक, पढ़-लिख कर प्रवीण दन गये । मातंग, नसूची का बड़ा अहसान मानने लगा ।
कुत्ते की पूँछ, वाँध देने पर, सिधी हो जाती है; सीधी हुई जान पड़ती है । परन्तु छोड़ते ही, वह अपने पहले ही रूप में श्रा जाती है । यह उस का जन्म सिद्ध अधिकार है । वह उसे छोड़ भी कैसे सकती है ! नसूची का मतवाला मन भी ठीक इसी तरह का था । प्राण नाश का भय उस का पहले ही मिट चुका था । मातंग भी उस के अहसान से पूरा-पूरा दब गया था । श्रतः वह भी उस के विरुद्ध व कुछ बोल नहीं सकता था । समय पा कर,नमूची, एक दिन, अपनी उसी बेहयाई-भरी चे दवी से, उसी मातंग की स्त्री से भी पेश आया । मातंग का खून खौल उठा मृत्यु से भी बदतर, उस अपमान को, अब वह और अधिक समय तक सहन न कर सका । वह दिनरात इसी टोह में रहने लगा, कि किसी तरह से उस का अन्त कर दिया जाय । परन्तु चित्त और सम्भूत, मातंग के इस मार्ग
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