________________
मुनि गज-सुकुमार
सलाशय से कुछ गीली मिट्टी यह ले अाया। उसकी, मुनि के सिर पर, पाल उसने बनाई । उस में, पड़ोस की चिता से, धधकते हुए कुछ अंगा' उसने ला उड़ेले । इस से मुनि को बड़ी ही असा वेदना हुई। मुनि की खोपड़ी भुरते के समान भुंज गई । उस में से खोलते हुए खून.की तेज़ धारा फूट निकली। फिर भी मुनि,पूरे मुनि ही बने रहे। सोमिल के जघन्य हत्य पर, उन्हें सिंचिन्मात्र भी क्रोध न हुया । इस प्राणान्तक परिपह को हँसते-हँसते उन्होंने सहन कर लिया। उस समय, सचमुच ही, उन की क्षमाशीलता अद्वितीय थी । वेदना की विभीषणता और अलीम सहिष्णुता के शुभ संयोग के समयमुनि सदा के लिए मोक्ष-धाम में पधार गये। मुनिनाथ ! श्राप की श्रादर्श क्षमा, मानव-समाज के लिए, एक दिव्य प्रकाशस्तम्भ है । शाप की सहिष्णुता और सजीव शान्ति, हमारे लिए स्वर्ग की सुन्दर सहक बनी हुई है। जैन-धर्म की छत्रच्छाया में, इस सड़क पर लग कर, भूले-भटके हम संसारी जीव, अपने अभीष्ट स्थान-मोक्ष धाम को सहज ही में पहुँच सकते हैं । ऋषि-राज! श्रापके इस श्रादर्शवाद को हमारा कोटिशः बार नमस्कार !