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________________ श्रमर- कुमार उस के पैर व लड़खड़ा रहे थे । मार्ग ही में एक सिंहनी ने उसे देखा । और, उसका काम, वात की बात में तमाम करदिया । उसके फलस्वरूप, घोर नर्क में जा कर वह जन्मी । अमर-मुनि भी, श्रायुष्य को पूर्ण कर भविष्य में मुक्ति के साथ, सदैव के लिए, वरण करने के लिए, स्वर्ग में जा सिधारे । • न-व-का-र महा-मन्त्र की शक्ति का सुन्दर परिचय संसार को मिला । क्या, हम भी, इसके जप-जाप से, लाभ उठाने की कोशिश कभी करेंगे ? क्या, याज के अन्धकार में यह हमारे लिए Search Light ( प्रकाश स्तम्भ ) का काम न देगा ? क्या, श्राज की हमारी बेकारी को इस की भव-भय-नाशिनी शक्ति, दूर न कर देगी ? विश्वास, व्यवस्था और निष्काम भाव की त्रिवेणी में नहा कर, एक बार श्राज हम इसकी श्राराधना तो करें | [txt]
SR No.010049
Book TitleJain Jagat ke Ujjwal Tare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPyarchand Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1937
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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