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कीर्तिध्वज मुनि
गई । उधर, मुनि कीर्ति-ध्वज भी, अभी तक, अपने सम्पूर्ण कर कमी का अन्त कर चुके थे। केवल-शान पाकर, कुछ ही काल में ये भी मोक्ष-धाम में जा विराजे । मनुष्य अपने भाग्य का पाप ही विद्याता होता है। जैसी भी भली या बुरी उस की भावनाएँ होती है, तदनुसार ही, भली या बुरी योनियों में जाकर जन्म उसे लेना पड़ता है । जव वात ऐसी है, तव प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य और धर्म है, कि वह अपनी भावनाओं को सदा शुद्ध रक्ख ।
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