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भ्रमक-स्वामी
वीर प्रभु के समय के आस-पास, 'प्रभवा' नामक एक डाकू था । दिन-दहाड़े बड़े-बड़े डाके डालना, उस के बाएँ हाथ का खेल था। कई प्रकार की विद्याओं का यह स्वामी था। एक तो 'निद्रावस्थापिनी' अर्थात् जव चाहे तब, जहाँ चाहे वहाँ, और जैसे चाहे तैसे, घोर निद्रा के वश मनुष्यों का कर देना और दूसरी, बात की बातमें मज़बूत से मज़बूत ताले तोड़