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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
इस धींगा - धींग की बात, प्रजा पर प्रगट हो गई। श्रौर, कुमार फिर भी चाल-बाल बच गया । श्रव तो राजा का क्रोध और भी भड़क उठा । कुमार के विरुद्ध, उसने युद्ध की घोषणा कर दी, उधर, परोपकार - परायण, कुमार के हृदय में कपट का नाम भी न था । सज्जन की हत्या और राजा की कुविचार पूर्ण कपट -मन्त्रणा का रहस्य, कुमार ने समझ पाया । श्रन्त में, वे भी क्षत्रिय - कुमार थे । युद्ध का उन के साथ 'चोलीदामन' का नाता था । वे ज़रा भी न झिके । राजनीति और युद्ध-विद्या में कुशल वे पहले ही से थे। अपनी सेना को, बात की बात में, उन्हों ने सजग कर दिया ।
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कुमार व वस्ती के बाहर चले श्राये । समय श्रीर स्थान के अनुसार, सेना की व्यूह रचना उन्हों ने की । कुमार, ठीक उस के बीच में थे । कुमार की श्राज्ञा के बिना कोई भी उस में प्रवेश नहीं कर सकता था। उधर, राजा भी वस्ती के बाहर युद्ध के लिए चला | दीवान ने पूछा, " महाराज ने आज किस पर टेढ़ी भौहें की हैं ! कुमार से लोहा लेने के पहले, कुमार I के सद्गुण, शूरता, साहस, और सम्बन्ध पर तो, भली-भाँति विचार कर लिया होगा।" राजा ने कहा, " अनर्थ हो गया ! कुमार का वंश हमें तो अव ज्ञात हुआ । एक चरवादार के हाथ, राज कन्या का भाग्य चिक गया !
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महाराज ! - 'अन्तर अँगुरी चार को; साँच-भूँठ में होई, । सव माने देखी कही; सुनी न माने कोई ॥
.यों सुनी-सुनाई बातों पर ही जब युद्ध छेड़ देंगे, तब तो ' पद-पद पर युद्ध होने लगेंगे । अतः ज़रा, कार्य-कारण की तह
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