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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
कुमार-" कैसे ? ”
लोग - 'हमारे राजा, एक बार यहाँ आये । हृदय खोल कर हम ने उन का स्वागत किया । उन्होंने हमें सधन समझा । जाते-जाते, हमारे खेतों पर का टैक्स ही बढ़ा गये । यों, भलाई का बदला, बुराई से हमें मिला । "
सज्जन के सिद्धान्त की जीत हुई । प्रतिज्ञा के अनुसार, कुमार ने अपना अश्व, आदि सज्जन को सौंप दिया । सज्जन घोड़े की पीठ पर जा चढ़ा । दिनों का मारा राज कुमार, एक चरवाहे के रूप में, सज्जन के साथ, श्रव चल रहा था। अपने सिद्धान्त के समर्थन में अनेकों ताने, चलते-चलते, सज्जन, कुमार पर कस रहा था । परन्तु कुमार को अपने अरमान की अड़ थी; और सज्जन अपने सिद्धान्त के सन्निपात का सताया हुआ।
था ।
थोड़ी दूर चल चुकने पर, " यदि अब भी तुम्हें अपने अरमान की अड़ वैसी ही है, तो चलो, एक वार अपने भाग्य की आज़माइश और कर देखो । और, इस वार भी हार जाने पर, अपने दोनों नेत्र, तुम्हें मुझे निकाल कर दे देने पड़ेंगे । यूँ, सज्जन ने कुमार से कहा । सज्जन ने इस पर भी अपनी स्वीकृति दे दी ।
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मनुष्यों की खोज में, चलते-चलते, बहुत दूर निकल गये । एक विशाल वट वृक्ष के निकट वे पहुँचे । वहाँ कुछ मनुष्य वैठे हुए थे। उन्हीं से अपने प्रश्न के निर्णय का निश्चय किया।
कुमार की अग्नि परीक्षा अभी होना चाक़ी थी । सज्जन ने पहले ही का प्रश्न उन मनुष्यों के सामने भी रक्खा । कुमार
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