________________
प्रदशी राजा
अपना ध्येय बना लिया था। अतः विचरण करते-करते एक दिन वे सितम्बिका भी जा पहुँचे । बाग में निवास उन्होंने क्रिया । जनता, मुनि के दर्शनार्थ उमड़ी। मन्त्री को भी सन्देश मिला । वायु-सेवन के मिस, राजा को साथ ले कर. उधर ही से एक दिन मन्त्री निकले । मुनि के उपदेश का भी वही समय था।" यह हुल्लड़ कैसा?" राजा ने मन्त्री से पूछा। मन्त्री ने, “ये निग्रन्य मुनि हैं । स्वर्ग-नर्क, श्रादि में इन की आस्था है: "बदले में राजा से कहा। "जिस बात का अस्तित्त्व ही जब कुछ नहीं, तो होना तो सम्भव उस का हो ही कैसे संकता है ? क्या अपनी पूछी हुई बातों का उत्तर, उचित नप से मुनि दे सकते हैं ? " कहते हुए राजा, मन्त्री को ले कर, मुनि के पास गये। तब राजा और मुनि के बीच, नीचे की बात-चीत हुई
"क्या, स्वर्ग और नर्क बाप की समझ में कोई वस्तु है ? यदि हाँ, तो मेरे दादा, मुझ ले भी अधिक पापी, आप की मानता के अनुसार थे, अवश्य ही नर्क में गये होगा और, भाँति-भांति की नारकीय यातनाओं को भोग रहे होंगे: क्यों नहीं प्राकर अपने पोते, मुझे पाप से पराङ्मुख कर देते हैं ?' ___ "अपनी रानी के साथ, किसी पुरुष को कुचेष्टा करते हुए यदि तुम देख लो,तो कहो, उस समय तुम क्या करोगे ?"
"उसी क्षण, मैं उसे तलवार की घाट उतार दूंगा"
"यदि अपने कुकृत्य का फल अपने कुटुम्बियों को सुनाने के लिए, एक मिनिट की भी छुट्टी वह चाहे, तो क्या, तुम उसे जाने दोग?"
[ ७]