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जैन - जागरण के अग्रदूत
लेख बड़े परिश्रम से लिखे गये थे जो स्थायी साहित्यकी चीजें हैं । अभी दो-तीन वर्ष पहले अनेकान्तमें भी आपके कई मार्केके लेख निकले है ।
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द्रव्यसंग्रह, पट्पाहुड, परमात्मप्रकाश, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय और वसुनन्दि श्रावकाचारके हिन्दी अनुवाद भी आपके किये हुए है और उनमें द्रव्यसग्रहकी टीका तो आपकी बहुत ही अच्छी है और अब भी उसका खासा प्रचार है ।
आदिपुराण - समीक्षा, हरिवशपुराण- समीक्षा और पद्मपुराण-समीक्षा ये तीन परीक्षा ग्रन्थ उस समय लिखे गये थे, जब लोग आचार्योंके कथाग्रन्थ लिखनेके अभिप्रायको अर्थात् कथाके छलसे बालबुद्धि जीवोको हितोपदेश देनेके उद्देश्यको न समझते थे और प्रत्येक कथाको केवलोकी वाणी मानते थे । इसीलिए इनके प्रकाशित होनेपर कुछ लोग बुरी तरह बौखला उठे थे । उनमें बाबूजीने जो कुछ लिखा है, उससे मतभेद हो सकता है, परन्तु उनके सदुद्देश्यमें शका करनेको कोई स्थान नही है । जैन समाज में किसी तरह मिथ्या विश्वास बने रहें, इसे वे सहन नही कर सकते ।
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ज्ञान सूर्योदय ( दो भाग), कर्त्ता खण्डन, कर्म फिलासफी, जैनधर्मप्रवेशिका, श्राविका धर्म-दर्पण, भाग्य और पुरुषार्थ, युवकोकी दुर्दशा, जैनियोकी अवनतिके कारण आदि और भी अनेक पुस्तकें और निबन्ध आपके लिखे हुए है |
मेरा प्रस्ताव है कि बाबूजीके तमाम साहित्यको सगह किया जाय और उसका बारीकीसे अध्ययन करके वे सब चीजे जो 'आउट आफ डेट' नही हुई है, दो-तीन जिन्दोमें प्रकाशित की जायँ । वे ७५ वर्षके हो चुके है । उनके जीतेजी ही यह काम हो जाय तो कितना अच्छा हो' । - दिगम्बर जैन
दिसम्बर १९४३
१~~खेद है कि बाबूजीका १९४५ में स्वर्गवास हो गया ।