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________________ जैन - जागरण के अग्रदूत लेख बड़े परिश्रम से लिखे गये थे जो स्थायी साहित्यकी चीजें हैं । अभी दो-तीन वर्ष पहले अनेकान्तमें भी आपके कई मार्केके लेख निकले है । २८२ द्रव्यसंग्रह, पट्पाहुड, परमात्मप्रकाश, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय और वसुनन्दि श्रावकाचारके हिन्दी अनुवाद भी आपके किये हुए है और उनमें द्रव्यसग्रहकी टीका तो आपकी बहुत ही अच्छी है और अब भी उसका खासा प्रचार है । आदिपुराण - समीक्षा, हरिवशपुराण- समीक्षा और पद्मपुराण-समीक्षा ये तीन परीक्षा ग्रन्थ उस समय लिखे गये थे, जब लोग आचार्योंके कथाग्रन्थ लिखनेके अभिप्रायको अर्थात् कथाके छलसे बालबुद्धि जीवोको हितोपदेश देनेके उद्देश्यको न समझते थे और प्रत्येक कथाको केवलोकी वाणी मानते थे । इसीलिए इनके प्रकाशित होनेपर कुछ लोग बुरी तरह बौखला उठे थे । उनमें बाबूजीने जो कुछ लिखा है, उससे मतभेद हो सकता है, परन्तु उनके सदुद्देश्यमें शका करनेको कोई स्थान नही है । जैन समाज में किसी तरह मिथ्या विश्वास बने रहें, इसे वे सहन नही कर सकते । } ज्ञान सूर्योदय ( दो भाग), कर्त्ता खण्डन, कर्म फिलासफी, जैनधर्मप्रवेशिका, श्राविका धर्म-दर्पण, भाग्य और पुरुषार्थ, युवकोकी दुर्दशा, जैनियोकी अवनतिके कारण आदि और भी अनेक पुस्तकें और निबन्ध आपके लिखे हुए है | मेरा प्रस्ताव है कि बाबूजीके तमाम साहित्यको सगह किया जाय और उसका बारीकीसे अध्ययन करके वे सब चीजे जो 'आउट आफ डेट' नही हुई है, दो-तीन जिन्दोमें प्रकाशित की जायँ । वे ७५ वर्षके हो चुके है । उनके जीतेजी ही यह काम हो जाय तो कितना अच्छा हो' । - दिगम्बर जैन दिसम्बर १९४३ १~~खेद है कि बाबूजीका १९४५ में स्वर्गवास हो गया ।
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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