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________________ उनकी सीख महात्मा भगवानदीन ह *मने प० गोपालदासजी वरैया - जैसा दूसरा आदमी समाजमें आज तक नही देखा, पर यह बात तो हर आदमीके लिए कही जा सकती है । नीमके पेड़के लाखो पत्तोमें कोई दो पत्ते एकसे नही होते, पर सब हरे और नुकीले तो होते है । समाजके हर आदमीसे यह आशा की जाती हैं कि वह कम-से-कम अपने समाजके मेम्बरोको सताये नही, उनसे झूठा व्यवहार न करे, उनके साथ ऐसे काम न करें, जिनकी गिनती चोरीमें होती है । समाजमें रहकर अपनी लंगोटी और अपने आँखके वाँकपनपर पूरी निगाह रखे और अपनी ममताकी हद बाँधकर रहे। इन पाँच वातोमें, जिन्हें अणुव्रत यानी छोटे व्रत नामसे पुकारा है, वे पूरे-पूरे पक्के थे, और पाँचों अणुव्रतोको ठीक-ठीक निभानेवाला समाजमें हमारे देखने में कोई दूसरा आदमी नही मिला । वह पूरे गृहस्थ थे, दुकानदारी भी करते थे, और पडित और विद्वान् होनेके नाते जगह-जगह व्याख्यान देने भी जाते थे और इस नाते आने-जानेका किराया और खर्च भी लेते थे, पर दुकानदारी और इन सब बातोमें जितनी सचाई वह वरतते थे, और किसी. दूसरेको वरतते हुए नही देखा है । अगर उन्हें कोई ५० रु० पेशगी भेज दे और घर पहुँचते-पहुँचते उनके पास १०रु० बचे तो वह १० रु० वापिस कर देते थे और दो पैसे बच रहें तो दो पैसे भी वापिस कर देते थे । वह हर तरह से हिसाब के मामले में पैसे-पैसेका ठीक-ठीक हिसाव रखते थे । पाँचो व्रतोमेंसे हर व्रतका पूरा-पूरा ध्यान रखते थे और इन व्रत प्र सचाई ही उनमें एक ऐसा जादू बनी हुई थी, जिससे सभी उनकी तरफ़ खिंचते थे । धर्मके मामलेमें आम तौरसे लोग अणुव्रतोमेंसे किसी व्रतकी परवाह नही करते और सचाईके अणुव्रतकी तो बिल्कुल ही परवाह नही करते १०
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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