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ब० चन्द्राबाई
कष्ट देना और पैर चने, कहीं किसीका देगा और भुलाएं की, कही frier कष्ट देना और मस्निफ मिलिनओत-प्रोन, पत्नी अव का विगो लिए विस्वसनीय, सबके लिए वन्दनीय |
जोवन नहीं. माता रे, व
यह नारीके नारीत्वका नरम विहान है, उनके नीत्व पर गति है, उसको गतिको अन्तिम नीमा है, जहां यह जाना पानी है, यही उसके जीवनका गंगानगर है, जहां वह भगवान् -सागरगं नीन हो, परम सुखका लाभ लेती है । निर्माणमयी, निर्वाणमयी नारीक . तिन नूतन मूर्तिको लाम-नाम प्रणाम ।
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भारतीय सस्कृतिके नव नायक गान्धीजीने नारीको सी नति को, वैधव्य के इन दिव्य को 'हिन्दू' का श्रृंगार रहा है। शृंगारकी इमी दीप्तिगे प्रोज्ज्वल आज एक नारी हमारे मध्यमं है, ब्रह्मचारिणी चन्दावाद !
चन्दावा- एक वैष्णव परिवारमें जन्मो, राधाकृष्णको Treat भक्तिधाराके वातावरणमें पली । माकी लोरियोमे उन्हें श्रद्धाका उपहार मिला, पिताके प्यार उन्होंने कमंटताका दान पाया और ११ वर्षकी उम्र में एक सम्पन्न जैन परिवारमे उनका विवाह हुआ ।
विवाह हुआ, उनके निकट इसका अर्थ है, विवाह-संस्कार हुआ और १२ वर्षकी उम्रमे उनका सब कुछ छिन गया, वे ठीक-ठीक जान भी न पाई और वैधव्यकी ज्वालामं उनका सर्वस्व भस्म हो गया ।
१२ वर्षकी एक सुकुमार बालिका, जो दुनियाको देखती है, पर समझ नही पाती ; जो समझती है, अपने व्याकरणसे, अपने कोदाले, अपने ही लक्षणसे । इतना विशाल विश्व और अकेले यात्रा यहाँ भाग्यका अस्तित्व है, योग्य अभिभावक मिले, पथ वना । वैष्णवकी श्रद्धाका सम्बल