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० चन्द्राबाई
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यह हमारे युगकी नई करवट, परम्पराको नई परिणति, नारीको असहायताका नया अवलम्ब, समाजके निर्माणको नव सूचनाका एक प्रतीक है, जिसे आरम्भमें वर्षों पतिना प्यार तो मिला, पर समाजका मान नही, जिसे परिवार मिला, जिसने परिवारका निर्माण किया, पर जिसे बरसो पारिवारिकता न मिली, जिसे बरसो नई आबादी के मधुर कोलाहलमे भी गित वीरानेकी शून्यताका भार होना पड़ा, पर जो धीरेधीरे युगका अवलम्ब लिये स्थिर होती गई और जो आज भी कुलीनता के निकट व्यगकी तो नहीं, ही उगितकी पात्र है । नवचेतना नावनास्रोतको भी प्रणाम !
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पति मर गया है, पत्नी १६ वर्षकी है। आशाओंके व प्रवी एक ही भोंके बुझ गये । कहीं कोई वहीं, कही कुछ नहीं, बम शून्य -- सव शून्य | स्थिरता जीवनमे सम्भव नहीं, पैर हिलनेकी भी शक्तिमे हीन । सहसा हृदयमे एक आलोक, आलोक जीवनकी स्फुरणा और स्फुरणामे चिन्तन !
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पति । नारीके जीवनमें पतिका क्या स्थान है ? पति ? क्या विवाह द्वारा प्राप्त एक साथी ? और विवाह ? आजको भाषामे एक ऐग्रीमेण्ट ? तो पति मर गया और वह ऐग्रीमेण्ट भग ! अब नारो स्वतन्त्र, चाहे जिधर जाय, चाहे जो करे ? है न यहीं ? हाँ; तो फिर हमारी सस्कृतिमे, इन शास्त्रोमे, विलहके ये गीत क्यो ? म हाँके साथ जैसे भीतरका, आत्माका सब रस सूख चता ।
फिर चिन्तन, गम्भीर चिन्तन, अन्तरमे भाव-धाराकी सृष्टि । जीवन में साथी तो अनेक है, पतिका अर्थ है प्रतीक व्रतका प्रतीक, लक्ष्य का प्रतीक । पतिव्रतका अर्थ है पतिका व्रत । पतिकी पूजा ? दुनिया कहती है हाँ, धर्म कहता है नही, पतिका व्रत, पतिकी पूजा ? यह अर्थका अनर्थ है । मानव, मानवकी पूजा करे, मानव ही मानवताका व्रत