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________________ जैन-जागरणके श्रप्रभूत को प्रथम छात्र प० मुन्नालाल रावेलीयकी शिक्षासे सागरमें श्री ' सतर्क - सुधा-तरगिणी पाठशाला' का प्रारम्भ हो गया । गगाकी विशाल धाराके समान इस सस्थाका प्रारम्भ भी बहुत छोटा-सा था । स्थान आदिके लिए मोराजी भवन आनेके पहिले इस सस्थाने जो कठिनाइयां उठाई, वास्तव में वे वर्णीजी ऐसे परिकर व्यक्तिके अभाव मे इस सस्थाको समाप्त कर देनेके लिए पर्याप्त थी। आर्थिक व्यवस्था भी स्थानीय श्रीमानोकी दुकानोसे मिलनेवाले एक आना संकटा धर्मादाके ऊपर आश्रित थी । पर इस सस्थाके वर्तमान विशाल प्रागण, भवन आदिको देखकर अनायास ही वर्णीजीके सामने दर्शकका शिर झुक जाता है । आज जैन समाजमें बुन्देलखण्डीय पडितोका प्रवल बहुमत है, उसके कारणोका विचार करने - पर सागरका यह विद्यालय तथा वर्णीजीकी प्रेरणासे स्थापित साढूमल, पपौरा, मालथीन, ललितपुर, कटनी, मड़ावरा, खुरई, बीना, बरुआसागर, आदि स्थानोके विद्यालय स्वय सामने आ जाते है । वस्तुस्थिति यह है कि इन पाठशालाओने प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा देनेमें बड़ी तत्परता दिखाई है । इन सबमे सागर विद्यालयकी सेवाएँ तो चिरस्मरणीय है । वर्णीजीने पाठशाला स्थापनाके तीर्थका ऐसे शुभ मुहूर्त में प्रवर्तन किया था कि जहाँसे वे निकले वही पाठशालाएँ खुलती गई । यह स्थानीय समाजका दोष है कि इन सस्थाओको स्थायित्व प्राप्त न हो सका । इसका वर्णीजीको खेद है । पर समाज यह न सोच सका कि प्रान्त भरके लिए व्याकुल महात्माको एक स्थानपर बाँध रखना अनुचित है । उनके सकेत पर चलकर आत्मोद्धार करना ही उसका कर्तव्य है । तथापि वर्णित्रय (पं० गणेशप्रसाद जी वर्णी, बावा भगीरथ वर्णी और प० दीपचन्दजी वर्णी) के सतत प्रयास तथा विशुद्ध पुरुषार्थने बुन्देलखण्ड ही क्या अज्ञान - अन्यकाराच्छन्न समस्त जैन समाजको एक समय विद्यालय पाठशाला रूपी प्रकाश ८२ भोसे आलोकित कर दिया था । इसी समय वर्णोजीने देखा कि केवल प्राच्य शिक्षा पर्याप्त नही है, फलत योग्य अवसर आते ही आपने जबलपुर 'शिक्षा - मन्दिर तथा जैन विश्व विद्यालयकी स्थापनाके प्रयत्न किये ।
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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