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________________ यह एक जलती मशाल है १३ के इन असुरक्षित घुंघले पथचिह्नोको धुन्दकी तरह उड़ाने में चूकेगी नही | और ये पथचिह्न ही तो है, जो भविष्यमें हमारे नये जागरणके इतिहासनिर्माणका बल होगे । 'जैन - जागरणके अग्रदूत' अपनी दिशामें इन धुंधले और मिटे जा रहे पथचोको श्रद्धासे, श्रमसे, सतर्कतासे समेटकर सेफम रस लेनेका ही एक मौलिक प्रयत्न है और यह प्रयत्न अपनी जगह इतना सफल रहा है कि 'आज' उसका मान करनेमें चूक भी जाये, तो 'कल' उसका सम्मान कर स्वयं अपनेको कृतार्थ मानेगा । X x X इस प्रयत्नकी मौलिकतापर हम एक नज़र डालते चलें । हम सक्रान्तिकालसे गुजर रहे है, जब बहुत कुछ पुराना टूट रहा है और नया वन रहा है। हर आदमी निर्माता नही होता और टूटफूटकी अव्यवस्थाएँ घबरायासा रहता है । अव्यवस्थाकी इसी घबराहटमें आज हम जी रहे हैं और इस स्थितिमें नही है कि अपने जागरणका इतिहास लिखनेको पलोयी मार बैठें ! उधर समयकी हवा पुराने पथचिह्नाके खण्डहरोका मलवा साफ करनेमें तेजी से लगी है, तो आज जो अनिवार्य है, वह यही कि हम अपने-अपने हिस्सेकी स्मृतियोका चयन कर लें । इस चयनमें इतिहासका ठोस होगा, तो काव्यकी तरलता भी । यह ठोस भविष्यमें इतिहासका ईट-चूना, तो यह तरलता उसे जोडनेकी प्रेरणा और यो दोनो ही अत्यन्त उपयोगी | यह पुस्तक, यह जलती मशाल, इस चयनका महत्त्व बताती, उसका तरीका सिखाती और नये जागरणके भिन्न-भिन्न क्षेत्रो साधकोको हाँक लगाती है । मेरा विश्वास है कि यह हाँक कण्ठकी नही, हृदयकी हैं और कानो तक ही नही, दिलोकी गुफाओ तक गूंजेगी ! X X X यहाँ जो लेख है, वे जीते-जागते लेख है और 'वकालतन' नही, जनता की अदालत में 'असालतन' आनेवालोमें है । वे न उनकी कलमके आँसू
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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