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________________ जैन-जागरणके अग्रदूत जीवनके अनुभव, जीवनकी साधना, जीवनकी सिद्धि, इनमें किसी एककी भी उपेक्षाका अर्थ है खण्डित जीवन और खण्डित जीवन निश्चय ही खण्डित देहसे वडी विडम्बना है। ___ यह पुस्तक हमें जीवनकी इस विडम्बनासे बचाती और जीवनकी स्वस्थ राह दिखाती है। हम उनका अभिनन्दन करे, जो कल आजका निर्माण कर गये, हम इस तरह जियें कि कलके निर्माता हो और यही मैं कहता हूँ-रोज-रोज छपकर हमारे हाथो आनेवाली पुस्तकोकी तरह यह कोई पुस्तक नहीं, यह तो एक जलती मशाल है । ___ पुरानोकी स्मृतिका अभिनन्दन, हमारे लिए कोई नई बात नहीं। हमारा ही राष्ट्र तो है, जिसने जीवितोके प्रति श्रद्धाके साथ मृतकोका श्राद्ध करनेकी महान् प्रथाका आविष्कार किया और हमी तो है, जिनके आँगनमें प्यारकी स्मृति ताजमहल वन, ससारका सातवां आश्चर्य हो गई । पुरानोकी स्मृतिका अभिनन्दन, हमारे लिए कोई नई बात नहीं, पर हमी तो है, जिनका इतिहास दूसरोका अन्दाज बनकर जी रहा है और हमी तो है, जिनके पास, अपने शहीदोकी एक सूची तक नही । पुरानी वात मै नही कहता, यही १८५७ से १९४७ तकके स्वतन्त्रता-युद्धमें बलि हुए शहीदोकी सूची १८५७, जब घने अधकारमें पड़े-सोते राष्ट्रके जीवनमें गैरतकी पहली पौ फटी और १९४७; जब कुलमुलाते, करवट बदलते राष्ट्रके जीवनमें स्वतन्त्रताका सूर्योदय हुआ। ४३ साल वे, और ४७ साल ये । गैरतसे आजादी तकके नये जागरणके पथचिह्न, जो कुछ हमारे चलते परो रौदे गये और कुछ समयकी हवासे धुंधले पड चले। हम लापरवाही और प्रमादका मद पिये पडे रहे और अपनी घडीको भी उसकी खूराक न दे, गतिहीन रक्खें, पर समयकी गतिका रोकना तो हमारे वश नही | और कौन-सा कायर है, जिसे समयकी गतिने धुंधला कर मिटा न दिया? तो हम चाहें या न चाहें, समयकी हवा नये जागरण
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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