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________________ यह एक जलती मशाल है कल, जो अपनेको छिपाये, गुमनाम रक्खे, हमारे जीवनमहलके गुम्बदोपर स्थापित करनेके लिए सोनेके कलश गढ़े जा रहा है । 25 नीव जिसके विना अस्तित्व नही और कलन, जिसके बिना व्यक्तित्व नही, तो 'कल' हो है, जो हमारी सम्पूर्णताकी रचनाएँ अपनी सम्पूर्णताका आत्मार्पण किये जा रहा है और उसके ही द्वारा रचित है वह सम्पूर्णता हमारी, जिसके गर्वमें, दर्पमें और भुलावेमें पडे हम उसकी उपेक्षा करें ! कल जो कल बीत चुका और कल, जो कल आयेगा ! X X X एक घना अँधेरा है, जो हमे चारों ओरसे घेर खडा है । यह अंधेर है- आजकी उपेक्षाका । हम हर बातमें कलके गीत गाते हैं, कलके सपन देखते है । कल : जो बीत गया, और कल, जिसका अभी कोई अस्तित्व नही । कलके गीत और कलके सपने कोई बुरी बात नही, क्योंकि स्मृतियो का आधार है कल और कल्पनाओका आगार है कल, पर हम कल और कलके मोहमें आजकी उपेक्षा करते है । X X . X आजका मोह, कलकी उपेक्षा, एक अंधेरा ! कलका मोह, आजकी उपेक्षा, दूसरा अँधेरा || फिर स्वस्थता कहाँ है ? प्रकाश कहाँ है ? स्वस्थता और प्रकाश जीवनके व्यापक तत्त्व है । स्वस्थता, तो फिर सम्पूर्ण स्वस्थता और प्रकाश तो वस प्रकाश ही प्रकाश । एकागिता अन्धकार हैं, समन्वय प्रकाश । एकान्तवादी दृष्टिकोण है अन्धकार और अनेकान्तवादी दृष्टिकोण है प्रकाश | 1 हम कल थे, हम आज हैं, हम कल होगे और यो हमारा अस्तित्व कलसे कलतक फैला है । एक कल हमारी वायी मुट्ठीमें, एक दायीमें और हमारे सांस आजकी हवामें । हम देखें पीछे, हम जियें आज, हम वढें आगे | पीछे देखने का अर्थ है जीवनके अनुभव, आज जीनेका अर्थ है जीवनकी साधना, आगे बढनेका अर्थ है जीवनकी सिद्धिका विश्वास 1
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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