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________________ यह एक जलती मशाल है। "जन जागरणके अग्नदूत” नामकी एक पुस्तक ज्ञानपीठ प्रका शित कर रहा है। उसमें आपके भी कुछ लेख ले रहा हूँ। जानता हूँ इसमें कोई ऐतराज तो आपको हो ही नहीं सकता, इसलिए यह सिर्फ इत्तला है।" श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीयका बहुत दिन हुए यह पत्र मिला, तो सचमुच मैने इसे एक मामूली इत्तला ही माना और यह इत्तला बस मेरे दिमागको जरा यो ही छूकर रह गई, पर ज्यो-ज्यो पुस्तकके छपे फर्मे मेरे पास आते गये, मै रसमें डूवता गया-जैसे अनेक वार हरकी पैडियाँ उतरकर ब्रह्मकुण्डमें नहाया हूँ, और आज जब यह पुस्तक पूरी हो रही है, तो मुझे लगता है कि रोज-रोज छपकर हमारे हाथो आनेवाली पुस्तकोकी तरह यह कोई पुस्तक नहीं है, यह तो एक जलती मगाल है। ___ जलती मशाल जो हमारे चारो ओर फैले और हमें पूरी तरह घेरकर खडे हुए भूतोकी भीड-से अँधेरेको चीरकर हमें राह दिखाती है। राह, जिसपर हमारे पैर हमें हमारी मजिलकी ओर लिये चलें और राहजिसपर हमारे दिल-दिमाग दूर तक साफ-साफ देख सकें ! एक घना अँधेरा है, जो हमें चारो ओरसे घेरे खडा है। वह अंधेरा है-'आज' के मोहका । हम हर बातमें 'आज' को कलसे अधिक महत्त्व देते है । अधिक महत्त्व देना कोई बुरी बात नहीं, अनहोनी घटना भी नहीं; क्योकि हमारी आँखें देखती ही है, हमारे सामनेकी चीज-न पीछे, न बहुत आगे, पर हम आजके इस मोहमें कलकी उपेक्षा करते है । ____ कल जो कल बीत चुका और कल, जो कल आयेगा। एक कल, जिसने अपनेको मिटाकर, खपाकर हमारे आजकी नीव रक्खी और एक
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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