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महासभा के जन्मदाता
वंश - परिचय
श्री
गुलाबचन्द्र टीग्या
राजा
लक्ष्मणदासजीके पूर्वज श्री जिनदासजी, जयपुर राज्यान्तर्गत मालपुरा गाँवके रहनेवाले थे । आर्थिक स्थिति ठीक नही होनेके कारण जिनदासजीके दोनो पुत्र -- फतहचन्दजी, मनीरामजी, - जयपुर चले गये । लेकिन वहाँकी भी व्यावसायिक स्थिति से मनीराम - जैसे महत्त्वाकाक्षी परिश्रमी युवकको सन्तोष नही मिला । उनका उद्योगी स्वभाव किसी विशाल क्षेत्रमें कुलांचे भरनेको उतावला हो उठा । उन दिनो यातायातमें अनेक विघ्न वाधाओ और आपदाओका मुकाबिला करना पडता था । कोई साहसी युवक घरसे बाहर पाँव रखनेका प्रयत्न करता भी था तो उसके पाँवोमें मोह-ममताकी ज्रजीर इस तरह डाल दी जाती थी कि वह छटपटाकर रह जाता था। लेकिन मनीरामजी स्वभावत. स्वावलम्बी और इरादेके मजबूत थे, उनके पथ में यह सब विघ्न-बाधाएँ क्या आड़े आती ? ने जयपुरसे अज्ञात दिशाकी ओर निकल पड़े ।
"जो बाहिम्मत हैं उनका रहमते हक साथ देती है । क्क़दम ख़ुद आगे बढके मंज़िले मकसूद लेती है ॥" - गोयलीय भाग्यकी बात, जिस धर्मशालामें मनीरामजी विश्राम कर रहे थे, उसीमें सेठ राधामोहनजी पारिख मृत्युशय्यापर पडे हुए छटपटा रहे थे । स्वार्थी नोकर सामान लेकर चम्पत हो गये थे । राज्य-सम्मानित और धनिक होते हुए भी निरीह और लाचार बने मृत्युकी घडियाँ गिन रहे थे ।
उनकी यह स्थिति देखकर मनीरामजीका दयालु हृदय द्रवित हो उठा । पारिखजी जिस शोचनीय अवस्थामें पडे हुए थे, उन्हें देखकर किसी