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जैन-जागरण के अग्रदूत
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पास नही हुए ।
१८७७० मे ३०-३५ वर्ष पीछे दिल्लीके बाजारोमे रयोत्सव करनेका सोभाग्य जैनियोको प्राप्त हुआ । अधिकतर विघ्नबाधा हमारे अग्रवाल वैष्णव भाइयोने उपस्थित की थी। उनका सरदार रम्मीमल arat था। दिल्लीके डिप्टी कमिश्नर कर्नल डेविसने जैनियोकी विशेष सहायता की ओर अन्तत. गवर्नर गर लेपिल ग्रिफनसे स्वीकृति प्राप्त हुई। इस कार्य में पिताजीने अग्रभाग लिया था । रथोत्सवके शान्ति - पूर्वक प्रबन्धकी जिम्मेदारी ११ जैनियो और ११ वैष्णवोपर रक्खी गई थी । पिताजी उन ११ व्यक्तियोमे थे । प्रवन्धके लिए करनाल, पानीपत, अम्बाला और रोहतक से भी पुलिस बुलाई गई थी । घण्टो पहले से retreat asकोपर अन्य सडको मिलानके मार्ग बन्द कर दिये गये थे। कोतवालीके सामने रेलसे उतरे हुए सैकडो जैनी पुलिसकी रोकसे विह्वल हो रहे थे । पिताजी यह देखकर कर्नेल डेविसके पास गये । उन्होने पिताजीकी जिम्मेदारीपर नाका खोल देनेकी परवानगी दे दी । उत्सव सानन्द सम्पन्न हुआ ।
मेरा जन्म नसीराबाद में वैसाख कृष्ण ४, सवत् १९३१ सन् १८७४ को सूर्योदय समय हुआ । मेरे जन्मसे पहले ४ भाई-बहन गुजर चुके थे । इस कारण मेरे नानाजीके आग्रहसे मेरा जन्म उन्होंके घर हुआ । छठीके कुछ दिन पीछे ही मेरे दोनो कान छेदकर बाली पहना दी गई थी, दोनो हाथो में कडे भी ।
उन दिनो किरासन तेलका किसीने नाम भी नही सुना था । सरसो - के तेलसे दीपकका प्रकाश होता था । सोते समय दीपक बुझा दिया जाता था । एक रात सोते समय मेरे हाथका कडा कानको वालीमे अटक गया । ज्योज्यो में हाथ सोचता था, कान वालीसे कटता जाता था और मै जोरजोर से चिल्लाता जाता था । दीपक जलाया गया. तो पता चला कि कान कट गया है और खून बह रहा है । वाये कानकी लौ अव भी इतनी कटी हुई है कि उसमें सुरमा डालनेकी सलाई आरपार जा सकती है । इस
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