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बावू अजितप्रसाद वकील मेरे दावा फ़ारसी विद्यामे निपुण और पारगत थे। मेरे पिताजी भी फ़ारसी भाषामे धाराप्रवाह नि संकोच वात कर लेते थे, और मैंने भी फारसीकी ऊंचे दरजेकी पुस्तके पढ़ी है।
१८५७ के गदरसे कुछ पहिलेसे दादाजी, पिताजी और बुआजी दिल्लीमे रह रहे थे। वावाजी अकेले ही नसीराबादमे थे । गदर शान्त हो जानेपर उन्होंने दो आदमी लेने के लिए दिल्ली भेजे । लेकिन उनमेसे एक आदमी रास्तेमे मार डाला गया और दूसरा आदमी उन सवको लेकर वैलगाडीसे नसीरावादको रवाना हुआ। रास्तेमे एक मुसलमान सिपाही मिल गया। वह फरकनगरका रहनेवाला था, और यह जानकर कि दादीजी फरकनगरकी बेटी है, वह गाड़ीके साथ-साथ पैदल चलने लगा। आगे चलकर कुछ डाकुओने गाड़ी घेर ली। सिपाहीने ललकारा"जब तक में जिन्दा है गाड़ीपर हाथ न डालना।" उसने डाकुओसे वातचीत की और उनसे कहा कि यह मेरे गांवकी बेटी है । मै थक गया हूँ। तुम लोग ऐसा वन्दोवस्त कर दो कि यह अपनी सुसराल नसीरावाद सही-सलामत पहुँच जाय ।" और दादीजी सकुशल नसीरावाद पहुंचा दी गई।
वावाजीके देहान्तके वाद मेरी दादी, पिताजी और माताजीको लेकर दिल्ली आ गई थी। पिताजीका प्रारम्भिक शिक्षण उस जमानेके रिवाजके अनुसार फारसीम हुआ। दिल्लीमे आकर उन्होने घरपर अग्नेजी पढी। फिर स्कूलमे भर्ती हो गये। १८६५ ई० मे वे एण्ट्रेस परीक्षामे उत्तीर्ण हुए और जुलाई १८६५ मे गुरुसराय तहसील (जिला झांसी) में अंग्रेजी भाषाके अध्यापक हुए। फिर अगस्त १८६७ मे शिमले में ४० २० मासिकपर सहायक अध्यापक नियत हुए, एक वर्ष वाद ५ रु० वेतन-वृद्धि हुई।
शिमलेमे स्कूलके अतिरिक्त पिताजी सेनाके अग्रेजोको उर्दूका अध्ययन भी कराया करते थे और २० रु० मासिक प्रति घण्टेके हिसावसे वेतन लेते थे। १८७७ ई० में उन्होने वकालतकी परीक्षा दी, किन्तु