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आत्म कथा
वकील साहबने अपनी जीवनी स्वयं लिखकर एक बहुत बड़ी आवश्यकताकी पूर्ति की है। यह जीवनी 'अज्ञात जीवन' शीर्षकसे २०४२६ श्राकारके २४० पृष्ठोमें मुद्रित है। उसीपरसे हम यह संक्षिप्त सार दे रहे हैं। जाति-मद, कुल-मदकी भावना हेय है, किन्तु अपने पूर्वजोकी
गौरवगाथा उत्साहवर्द्धक तथा शक्तिप्रद होती है। हमलोग क्षत्रियकुलोत्पन्न, राजा अग्रकी सतान, वीसा अग्रवाल, जिन्दल गोत्रीय है। रुईका व्यापार करनेसे रुईवाले सेठ कहलाते थे । व्यापार करतेकरते वैश्य कहलाने लगे। इधर चार पीढियोसे अग्रेजी सरकारकी चाकरी करनेसे वैश्य पदसे भी गिर गये और सेठके स्थानमे बावू कहलाने लगे। मै तो वकालतका व्यवसाय और सस्कृत भाषाका अभ्यास करनेसे अपनेको पण्डित कहलानेका अधिकारी समझता हूँ। मेरे चारो पुत्रोने भी वकालतकी उपाधि प्राप्त कर ली है । मेरी छोटी बेटी शान्ति और पोती शारदा दोनोने सस्कृत भाषामे एम० ए० की उपाधि प्राप्त कर ली है। मेरी कनिष्ठ पुत्र-वधू एम० ए० (Previous) पास है। मेरी वडी वेटीकी वेटी प्रेमलताने लन्दन विश्वविद्यालयसे वी० ए० (Hons) डिगरी प्राप्त की है। कर्मणा वर्णव्यवस्था सिद्धान्तानुसार हम लोग किसी प्रकारसे भी वनिये नही है।।
हमारे पुरखा खास शहर दिल्लीके रहनेवाले थे । मेरे परपितामह सेठ चैनसुखदासजी नसीराबाद जा बसे थे। मेरे पितामह बनारसीदासजीका जन्म वही हुआ था। वही वे उच्च पदाधिकारी हुए और वही ३५ वर्षकी भरी जवानीमें १९५८ ई० मे उनका शरीरान्त हुआ।