SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अर्जुनलाल सेठी हो गया है। हम उनसे हर हालतमे मिलते रहे। उस हालतमे भी मिले जव उन्हें योगभ्रष्टकी पदवी मिली हुई थी, पर हमने तो उनमे कोई अन्तर पाया नहीं। उनकी आजादीकी लगन ज्योकी त्यो बनी हुई थी, उनका सर्वधर्मसमभाव ज्योका त्यो था और उनकी आजादीकी तडपमे कोई अन्तर नहीं आया। हम तो उसीको धर्मकी चोटीपर पहुंचा हुआ मानते है जो जिस धर्ममे पैदा हुआ हो, उस धर्मके आम लोग उसे धर्मभ्रष्ट समझने लगे और उससे खूब घृणा करने लगे और वन सके तो उन्ही आम लोगोमेसे कोई ऐसा भी निकल आये जो उस धर्मभृष्टको मौतके घाट उतार दे और क्या गांधीजी कुछकी नजरमे धर्मभृष्ट नही थे और क्या उन्हे धर्मभूष्ट होनेकी सजा नही मिली। इस लिहाजसे तो सेठीजी अच्छे ही रहे। फिर वे धर्मभष्ट तो रहे पर सज़ासे बच गये। अर्जुनलाल सेठीका जीवन सचमुच जीवन है । यह भी कोई जीवन है कि वनी-बनाई पक्की सड़को पर दौडे हुए चले जाये, सेठीजीका जीवन कभी पहाडीकी चोटियोको लाँघना और कभी चक्करदार रास्तोंमे धूमना, घने जगलमे पगडडीकी परवाह किये विना जिधर चाहे उधर चल पड़ना। ऐसा करनेके लिए नामवरीको अपने पाँवोके नीचे कुचलनेके लिए जितनी हिम्मत चाहिए, उतनी उनमे थी और यही तो एक ऐसी चीज थी कि , जिसकी वजहसे हमको सेठीजीके जीवनसे स्पर्द्धा होती है। तो क्या सेठीजीमे कोई कमी या बुराई नहीं थी, हाँ कमियाँ और वेहद बुराइयों थी। अगर गुलावके फलकी टेक, गुलावकी झाडीके काँटे, गुलावकी बुराइयाँ है तो वैसी उनमे अनगिनत वुराइयाँ थी । और गुलावके फूलकी झाडीके वह सूखे पत्ते जो पीले पड जाते हैं, कमियाँ है तो उनमे अनेको कमियाँ थी । अगर गुलावकी टेढी-मेढी बेढगी, बदसूरत जड़ें गुलावकी कमियां है तो ये सव उनमे थी। पर हम करे तो क्या करें, हमारी नजर तो गुलावपर है और हम उस गुलावपर इतने मस्त है कि उसे तोड़ते हुए हमारे सैकडो काँटे भी लग जाये तो भी अपनी मस्तीमे उस ।
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy