SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अर्जुनलाल सेठी ३७७ उनकी वडी सीवी होती थी और इतनी मनलगती होती थी कि असली बात झट समझमे आ जाती थी। ऐसे गुरुके शिष्य अर्जुनलालजी अगर कुछ ऐसी बाते कह गये जो बहुतोको मन लगती नही जंचती तो उसमे उनका क्या दोष ! वे तो सचाईके साथ खोजमे लगे और जो हाथ आया कह गये। ___वह भरी जवानीमे समाज-सेवाके मैदानमे कूद पड़े और सबसे 'पहले उन्होने वह काम उठाया जिसकी समाजको सबसे ज्यादा जरूरत थी, यानी उन्होने एक शिक्षासमितिकी नीव डाली, उसीके मातहत जयपुरमें पाठशालाओका जाल बिछा दिया। अब्दुलगफूर नामके विद्यार्थीको लेकर समाजमे बडी खलबली मची, पर समाज पैदायशी त्यागी अर्जुनलालका क्या बिगाड़ सकती थी और फिर उन्हें एक साथी घीसूलाल गोलेच्छा ऐसे मिल गये थे, जिसकी दोस्तीने सेठीजीके त्यागको और भी ज्यादा मजबूत कर दिया था। यह शिक्षासमिति कुछ दिनोमे एक छोटी-मोटी यूनिवर्सिटीका रूप ले बैठी और दूर-दूरके विद्यार्थी उसकी परीक्षामे शामिल होने लगे। शिक्षाकी सडक जिस रास्ते होकर गई है, उस रास्तेमे दासतासे मुठभेड हुए वगैर नही रहती और कैसी भी शिक्षासमिति क्यो न हो, दासता की बेडियोमे फँसकर वह सच्चे धर्मकी तालीम नहीं दे सकती। उसका सच्चा धर्म और स्वाधीनता एकार्थवाची शब्द है. इसलिए उसको राजसे टक्कर ही नही लेनी पड़ती, वल्कि उसे उखाड फेकनेकी तैयारी करनी होती है । सेठीजीकी शिक्षासमिति आखिर उस मजिलपर पहुंच तो गई और वे सरकारसे टक्कर ले कि इन्दौरमे श्री कल्याणमलविद्यालयके प्रधानाध्यापकको हैसियतसे गिरफ्तार कर लिये गये और कुछ दिनो जयपुर जेलमें और कुछ दिनो वैलोर जेलमें रहने के बाद बाहर निकले कि जल्दी न्ही नन २१ के आन्दोलनमें शामिल हुए। पैदायशी त्यागीके लिए और राह ही क्या थी। हमसे उमरमे दो वर्ष वडे थे और हमारी उनसे जब जान-पहचान
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy