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________________ श्री अर्जुनलाल सेठी ३७५ मिले। वे वडी मुहब्बतसे मिले और ऐसी खातिरदारी की मानो हम उनके माँ - जाये भाई हो । थोड़ी देर बाद वे हमे अपने घर ले गये और १६ वर्षकी लडकीat दिखाया जो वीमारीसे काँटा हो गई थी और एकदम पीली पड़ी हुई थी । चक्रवर्ती और लडकीकी मॉसे वातो वातोमे यह भी पता चला कि उस लडकीके लिए दवा और दूधका भी ठिकाना नही, तब हमने सोचा कि कुछ रुपये चक्रवर्तीको दे देने चाहिएँ । हम घरसे 'सर्वेण्ट' के दफ्तर लौट ही रहे थे कि रास्तेमे एक आदमीने चक्रवर्ती नामका ५०० रु० का चेक दिया, चक्रवर्तीजी हमारे साथ उस चेकको लेकर पासके वैकमें पहुँचे और ५०० रु० लिये । दफ्तरमे आये । पाँच मिनिटमें पूरे पाँच सौ खतम हो गये । 'सर्वेण्ट' में काम करनेवालोकी २-३ महीनोकी तनख्वाह चढी हुई थी । चक्रवर्तीकी नजरमे पहले वह आदमी थे जो देशकी आजादी के काममें जुटे हुए थे न कि वह बीमार लड़की जो पलंगपर पडी थी । हमने जव यह देखा तो यही मुनासिव समझा कि चक्रवर्तीक हाथमे दिये हुए रुपये तो न कभी दवाका रूप ले सकेंगे और न कभी दूध वन सकेगे। इससे यही ठीक होगा कि दवा खरीद कर दी जाय और दूधका कोई इन्तजाम कर दिया जाय। अगर कुछ देना ही है तो लड़कीकी माँके हाथमे दिया जाय । हमने यह भी सोचा कि लड़कीकी माँ हिन्दू नारी है और हिन्दू पत्नी है, वह पति देवतासे कैसे छिपाव रख पायेगी और फिर उसके पास भी वह रुपया कैसे बच सकेगा । आखिर ऐसा ही इंतजाम करना पड़ा कि जिससे सब झझटोंसे बचकर रुपये दूध और दवामे तबदील हो सके । वस, इस ऊपरकी कथासे समझ लीजिए कि सेठीजीके हाथमें पहुँचा हुआ रुपया जाने कहाँ-कहाँ और किस तरह बिखर जाता था और किस तरह कम-ज्यादा देशकी आजादीके दीपकका तेल बनकर जल जाता था । सारी सस्थाएँ एक-एक आदमीके बलपर चलती है और वह आदमी इघरउधरसे माँगकर ही रुपया लाता है, पर जिनपर वह रुपया खर्च करता है, उनपर सौ एहसान जमाता है । इतना ही नहीं, वह तो प्लेटफार्म से चिल्ला
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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