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जैन-जागरणके अग्रदूत ___अर्जुनलाल सेठीको हम आदमी कहे, या देशकी आज़ादीका दीवाना कहें, हम अर्जुनलाल सेठीको हिन्दुस्तानी कहे, या आज़ादीके दीपकका परवाना कहे जो अपने २५ वर्षके इकलौते बेटेको मौतके विस्तरपर छोडकर प० सुन्दरलालके एक मामूली तार पर दौडा हुआ वम्बई पहुंचता है, और बेटेके मर जानेके बाद भी उसे देशका काम छोडकर घर लौटनेकी जल्दी नही होती । कोई यह न समझे कि उसे घरसे मोह नही था, उसे वेटेसे प्यार नहीं था। वह इतना प्यारा था, और इतना मुहन्वती था कि उस-जैसे पतिके लिए पलियाँ तरस सकती है, उस-जैसे वापके लिए वेटे जानपर खेल सकते है, उस-जैसे दोस्तके लिए दोस्त खून-पसीना एक कर सकते है, उस-जैसे नेताके लिए अनुयायी सरके वल चल सकते है।
अर्जुनलाल सेठीने त्यागका व्रत नहीं लिया, त्याग किसीसे सीखा नही, किसी नेताके व्याख्यान सुनकर जोशमे आकर उसने त्यागको नहीं अपनाया, त्याग तो वह माँके पेटसे लाया था, त्याग तो उसकी जन्मघुट्टीमें मिला था, त्यागको तो उसने मौके स्तनसे पिया था, इसलिए त्याग करते हुए उसे त्यागका गीत नही गाना पडता था और त्यागी होते हुए दूसरो पर त्यागके घमण्डका रोब नही जमाना पडता था । त्यागीका वाना पहननेकी उसे जरूरत ही कहाँ थी? इन पक्तियोके पढ़नेवालोमे हो सकता है अनेको ऐसे निकल आवे जो खुले नही तो मन ही मन यह कहने लगे कि रुपये तो हमसे भी मंगाये थे, पर यह वही बता सकते है जो उसके साथ रहे हो कि उसने उन रुपयोका क्या किया था । अर्जुनलाल सेठीके त्यागकी वातें ऐसी है, जिनको आज भी हम साफ-साफ कहनेके लिए तैयार नहीं। चूकि यह अच्छा ही है कि अभी वे कुछ दिनो और अजानकारीके गड्ढेमे पडे रहे, पर हम अपने पढनेवालोको किसी दूसरी तरहसे समझाये देते है
कलकत्ताके मशहूर देशभक्त श्री श्यामसुन्दर चक्रवर्ती जो कि चित्तरजनदासजीकी टक्करके आदमी थे, उनसे मिलनेके लिए हम प० सन्दरलालजीके साथ कलकत्ता पहुंचे। श्यामसुन्दर चक्रवर्ती 'सर्वन्ट' नामका एक अग्रेजी दैनिक निकालते थे। हम वही उनसे उनके दफ्तरमें