________________
३७०
जैन-जागरणके अग्रदूत उनको अहितकर जंचने लगती है। इसके अलावा भावी उदयावलीके वल अथवा यो कहूँ कि कालदोषसे अभागे अल्पसख्यकोर्मेसे कोई कस जैसे भी पैदा हो जाते है जो अपने घरके नाश करनेपर उतारू हो जाते है, गैरो के चिराग जलाते है और पूर्वजोके घरको अँधेरा नरक बना देते हैं।
......इस तरह जैन कुलोम, जैन पञ्चायतोमें, जैन गृहोमे चलतीचलाती ठण्डी पड़ी हुई आम्नायोमें कलह, भीषण क्षोभ और तत्कालस्वरूप तीव्र कषायोदय और अशुभ वन्धके अनेक निमित्त कारणोंसे बचाकर जैनोका रक्षण, सगठन और उत्थान होगा, तभी इस समयकी लपलपाती हुई अनेकान्त-नाशक जाज्वल्यमान दावाग्निसे जैनधर्म और जैनसस्कृति स्थिर रहेगी।
-