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जेन इतिहासकी पूर्व-पीठिका
जैन पुराणोंकी प्रामाणिकता जैनधर्मका सर्वमान्य इतिहास महावीर स्वामीके समयसे व उससे कुछ पूर्वसे प्रारंभ होता है। इसके पूर्वके इतिहासके लिये एक मात्र सामग्री जैनधर्मके पुराण ग्रंथ हैं। इन पुराणग्रन्थोंके रचनाकाल और उनमें वर्णित घटनाओंके कालमें हजारों, लाखो, करोडों नहीं अरबों खवौं वर्षों का अन्तर है। अतएव उनकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता इस बातपर अवलंबित है कि वे कहांतक प्राकृतिक नियमोंके अनुकूल, मानवीय विवेकके अविरुद्ध व अन्य प्रमाणों के अप्रतिकूल घटनाओंका उल्लेख करते है । यदि ये घटनायें प्रकृति-विरुद्ध हो, मानवीय बुद्धिके प्रतिकूल हों व अन्य प्रमाणोले बाधित हो, तो वे धार्मिक श्रद्धाके सिवाय अन्य किसी आधारपर विश्वसनीय नहीं मानी जा सकती, पर यदि वे उक्त नियमों और प्रमाणोसे बाधित न होती हुई पूर्वकालका युक्ति-संगत दर्शन कराती हो तो उनकी ऐतिहासिकतामें भारी संशय करनेका कोई कारण नहीं होसकता।
जिन इतिहास-विशारदोंने जैन पुराणोंका अध्ययन किया है उनका विश्वास उन पुराणोकी निम्नलिखित तीन बातोपर प्रायः नहीं जमताः
१ पुराणों के अत्यन्त लम्बे चौड़े समय-विभागोंपर । २ पुराणों में वर्णित महापुरुषोंके भारी भारी शरीर-मापोपर व उनकी दीर्घातिदीर्घ आयुपर ।