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जैन इतिहासकी पूर्व-पीठिका ३ कालके परिवर्तनसे भोगभूमि व कर्मभूमिकी रचनाओके
विपरिवर्तनपर। 'पल्य' और 'सागर' के मापोंकी यथार्थता ।
जैन पुराणोंमें अरबो खबों ही नहीं पल्य और सागरों (आधुनिक संख्यातीत) वर्षोंके माप दिये गये हैं। इनको पढकर पाठकोंकी बुद्धि थकित होजाती है और वे झट इसे असम्भव कहकर अपने मनके बोझको हल्का कर डालते हैं। किन्तु विषयपर निष्पक्षतः, वुद्धिपूर्वक विचार करनेसे इन मापोंमें कुछ असम्भवनीयता नहीं रह जाती। यह सभी जानते हैं कि समयका न आदि है और न अन्त । वैज्ञानिक शोध और खोजने यह भी सिद्धकर दिया है कि इस सृष्टिके प्रारम्भका कोई पता नहीं है और न उसमें मनुष्य जीवन के इतिहास-प्रारम्भका ही कुछ कालनिर्देश किया जासकता है। लन् १८५८ ईखीके पूर्व पाश्चात्य विद्वानोंका मत था कि इस पृथ्वीपर मनुष्यका इतिहास आदिसे लेकर अब तकका पूरा पूरा ज्ञात है, क्योंकि 'चाइबिल' के अनुसार सर्व प्रथम मनुष्य 'आदम' की उत्पत्ति ईसासे ४००४ वर्ष पूर्व सिद्ध होती है । पर सन् १८५८ ईस्वीके पश्चात् जो शूगर्भ-विद्यादि विषयोंकी खोज हुई उसले मनुष्यकी उक्त समयसें बहुत अधिक पूर्व तक प्राचीनता सिद्ध होती है। अश इतिहासकार ४००४ ईस्वी पूर्वसे भी पूर्वको मानवीय घटनाओं का उल्लेख करते है। मिश्रदेशकी प्रसिद्ध गुम्मटो (Pyramids) का निर्माण-काल ईस्वीसे पांच हजार वर्ष पूर्व अनुमान किया जाता है। खाल्दिया (Chaldea)