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श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय) ।
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रहती हूं तो मेरा पुत्र भी जंगल में रहेगा इस वास्ते मैं क्षत्रिय चरु मक्षण करूं जिससे मेरा पुत्र राजा होकर जंगलवास छोड़ दे ऐसा विचार आप तो क्षत्रिय चरु भक्षण कर गई बहिन को ब्राह्मण चरु भेजके खिलाया। रेणुका के राम नाम का पुत्र हुआ, बहिन के कृतवीर्य पुत्र हुआ, राम,क्षत्री का तेज दिखाने लगा अन्यदाएक विद्याधर अतिसारी इन्होंके आश्रममें चला पाया, व्याधि के वश आकाशगामनी विद्या भूलगया, तब राम ने उसकी औषधी तथा पथ्य में सेवा करी, अच्छा हुआ तुष्ट मन से राम को परशु विद्या दी, राम उस विद्या को सरकंडे के वन में जाकर सिद्ध करी, उस शस्त्र.विया के सिद्ध होने से जगत् विख्यात परशुराम नाम हुआ, एकदा रेणुका यमदमि को पूछ अपणी बहिन से मिलने हस्तिनापुर गई, उहां रेणुका अपने बहनोई से विषय सेक्ने लगी, उहां रेणुका के दसरा पुत्र होगया पीछे यम'दमि उस को लाने गया, भागे पुत्र युक्त देखी, रेणुका ने समझाया, मेरे
आपके वीर्य को छोड़ बंधी थी, को इहां अच्छा सुयोग्य खान पान से बध कर पुत्र होगया, यमदमि स्नेह के वश लुब्ध होगया सच है वृद्ध तो लुब्ध निश्चय होई जाता है,परंतु कतिपय तरुण पुरुष भी स्त्रियों के रागवद्ध बहुलतया दोष नहीं देखते हैं, यमदमि उस पुत्र को कंधारूढ़ कर स्त्री को आश्रम
में ले आया, जब परशुराम ने माता के पुत्र देखा तब क्रोध में आकर ' माता का और उस बालक का परशु से मस्तक काट डाला, जब पहुंचाने
आनेवाले राजपुरुषों ने जाकर यह वृत्तान्त राजा अनंतवीर्य से कहा तब राजा सैन्या लेकर आया, तापसों का पाश्रम जलाया, सर्व तापस बास पा कर भगे, यह स्वरूप सुनते ही परशुराम, राजायुक्त सारी सैन्या को काष्ठवत् चीर के गेर दिया, तद पीछे प्रधानों ने कृतवीर्य को राजा बनाया कृतवीर्य पिता का पैर लेने छुपकर यमदमि को मार के भग मया, तब परशुराम पिता को मरा देख हस्तिनापुर जाकर राजा कृतवीर्य को मार के राज्य सिंहासन पर बैठ गया, राज्य पराक्रमाधीन है, उस अवसर में कृतचीर्य की तारा नाम राणी, गर्भवती भाग के किसी जंगल में तापसों के
आश्रम में गई, उन तापसों ने मठ के भूमिगृह में दया से छिपा रखी, उहां - चौदे प्रथम देखा जो स्वम, उस से सूचित तारा ने पुत्र जना, सुभूम नाम