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परशुराम का वृत्तान्त।
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तहातक सर्व तप पानी के प्रवाह में मूत ने जैसा है, चिड़ा चिड़ी को छोड़ दिया, स्त्री की वांछा उत्पन्न हुई यह स्वरूप देख धन्वंतरि देवता अहंत भक्त होगया, दोनों अदृश्य होगये । यमदग्नि वहां से उठके नेमि कोष्टक नगर में पहुंचा, वहां का राजा जितशत्रु उसके बहुत बेटियां थी उसके पास. पहुंचा, राजा उठ.खड़ा हुआ, हाथ जोड़ आने का कारण पूछा, तब यमदग्नि ने कहा मैं तेरी एक कन्या याचने आया हूं तब राजा ने कहा मेरे १०० पुत्रियां है उनमें से जो आपको वांछे उसको आप लेलो तब यमदनि.कन्या के महलों में गया और कहने लगा जिस कन्या को मेरी स्त्री बनना है सो कहदो मैं वनूंगी तब उन पुत्रियों ने खेत पलित, जटाला, दुर्बल, भीख मांग खाने वाला जान के सबों ने धूंका और सोंने कहा ऐसी बात कहते तुझ को लज्जा नहीं आती यह बात सुन यमदमि क्रोध से धमधमायमान किसी को कूबडी, कुरूप अनेक विकृति वाली बनादी । यमदग्नि वहां से निकल महिल के वाहिर चौक में आया वहां राजा की छोटी पुत्री रेणु में खेल रही थी उसको बीजोरे का फल दिखाके वाला हे रेणुका तूं मुझे वाचती है तब उस बालिका ने वीजोरा लेने को हाथ पसारा तब यमदग्नि में उस पालिका को उठा लिया। राजा से कहा ये मुझे वांछती है तब राजा उसके श्राप के डरसे डरता विधि से उसके साथ उसका ब्याह कर दिया। कितनांक गउऐं और कितना एक धन देकर विदा किया। तब यमदग्नि स्नेह के वश सब सालियों को यथा स्वरूप पीछा बना दिया उस रेणुका भार्या को लेकर अपने आश्रम में पहुंचा पीछे उस मुग्धा को पाल पोष प्रेम से बड़ी करी जब यौवनवंती हुई तब यमदग्नि ने अग्नि की साक्षी से फिर उसके संग विवाह किया जब ऋतु धर्म को प्राप्त हुई तब कहने लगा, हे सुन्दरी, मैं तेरे वास्ते होम में डालने योग्य वस्तुओं का चरू साधता हूं जिससे तेरे सर्व ब्राह्मणों में उत्तम प्रतापधारी पुत्र होगा तब रेणुका ने कहा हस्तिनापुर में कुरुवंशी अनंतवीर्य राजा को मेरे से बड़ी बहिन व्याही है उसके वास्ते तूं चत्रिय चरू भी साधन. कर, मंत्रों में संस्कार सिद्धकर तब यमदग्नि अपनी स्त्री वास्ते तो ब्राह्मण चरु और शालि वास्ते क्षत्रिय चर दोनों सिद्ध किया, अब रेणुका ने विचार किया मैं अटवी में हरणी की तरह