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जैनधर्म की प्राचीनता का इतिहास ।
में व्यापार करना, व्याज वृद्धि, धनका ममत्व करना, इत्यादि का समावेश है, प्रथम मट्टी के संचय बनाकर वनस्पती तथा अन्य द्रव्य से मृत्तिका गत लोहेहूं गलाकर अहरण, हथोड़ी, सांडसी प्रमुख बनाये, उनों से अन्य सर्व वस्तु वणाई।
अब भरतादि प्रजा लोकों को ७२ कला सिखलाई, उनों का नाम लिखने की कला, १ पढ़ने की कला, २गणित कला, ३गीत कला, ४ नृत्य कला, ५ ताल बजाना, ६ पटह बजाना, ७ मृदंग बजाना, ८ भेरी बजाना,
वीणा बजाना, १०वंश परीक्षा, ११भेरी परीक्षा, १२गज शिक्षा, १३तुरंग शिक्षा, १४ धातुर्वाद, १५ दृष्टिवाद, १६ मंत्रवाद, १७ वलि पलित विनाश, १८ रत्न परीक्षा, १६ नारी परीक्षा, २० नर परीक्षा, २१ छंद बंधन, २२ तर्क जल्पन, २३ नीति विचार, २४ तत्व विचार, २५ कवि शक्ति, २६ ज्योतिष शास्त्र ज्ञान, २७ वैदिक, २८ षड् भाषा, २८ योगाभ्यास, ३० रसायण विधि, ३१ अंजन विधि, ३२ अठारह प्रकार की लिपि, ३३ स्वम लक्षण, ३४ इंद्रजाल दर्शन, ३५ खेती करना, ३६ वाणिज्य करना, ३७ राजा की सेवा, ३८ शकुन विचार, ३६ वायु स्तंभन, ४० अग्नि स्तंभन, ४१ मेघ वृष्टि, ४२ विलेपन विधि, ४३ मईन विधि, ४४ ऊर्ध्व गमन, ४५ घट बंधन, ४६ घट भ्रमन, ४७ पत्र छेदन, ४८ मर्म भेदन, ४६ फलाकर्षण, ५० जलाकर्पण, ५१ लोकाचार, ५२लोक रंजन, ५३ अफलपक्ष सफल करण, ५४ खड़ बंधन, ५५ छुरी बंधन, ५६मुद्राविधि, ५७लोहज्ञान, ५८दंतसमारण, ५६काल लक्षण, ६०चित्र करण, ६१बाहु युद्ध, ६२मुष्टि युद्ध, ६३दृष्टि युद्ध, ६४दंड युद्ध, ६५ खड्युद्ध, ६६ वाग्युद्ध, ६७ गारुडीविद्या, ६८ सर्पदमन, ६६ भूत मईन, ७० योग, द्रव्यानुयोग, अक्षरानुयोग, व्याकरण, औषधानुयोग, ७१ वर्ष ज्ञान, ७२ नाम माला, ये पुरुषों की ७२ कला।
अथ अपणी पुत्रियादि स्त्रियों को ६४ कला
सिखलाई उनों के नाम। नृत्य कला १,.औचित्य कला २, चित्रकला ३, कादित्र ४, मंत्र ५, तंत्र .६, ज्ञान ७, विज्ञान ८, दंभ ६, जर स्तंम १०, गीत गान ११, वाल मान