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जैनधर्म की प्राचीनता का इतिहास |
स्वगोत्र का विवाह बंध करने, भरत के संग जन्मी ब्राह्मी को बाहुबलि को ब्याही, बाहुबली के संग जन्मी सुन्दरी को भरत से ब्याही, ऐसा जुगल धर्म दूर किया, अन्य युगल भी इस बात का रहस्य जान के अन्यों के जांत को पुत्री देने से क्रम से कोट्यावधि प्रजाकी वृद्धि भई । ऋषभ ने दूध टाल के स्वपुत्रियों का व्याह किया, वही मर्याद आजकल भी यवन जाति करती है । यवन पुत्र से यवन देश वसा, वह सब यवन कहलाये, वह देश वादन. जंगवार नाम से अधुना प्रसिद्धी में है । तब पीछे प्रभु ने चार वर्ण की स्थापना करी । जिसको दंडपासक ( कोटवाल ) न्यायाधीश बणाया, उन्हों का उग्रवंश स्थापन किया । १ उसके आवांतर नाजम, १ तैसीलदारादिक अनेक अधुना भेदांवर प्रचलित हैं। वह उग्रवंशी अधुना अग्रवाल वैश्व नाम से प्रसिद्ध है, जो भगवान ने अपने कायरक्षक चित्रगुप्त युगल को बनाया। वह अधुना कायरथ नाम से प्रसिद्ध है । ये प्रभु पास शस्त्र बांध प्रहरा देना, अलंकारादि शृंगार लिखना, हिफाजत करना इत्यादि चारों वर्णों का काम प्रभु के काय रक्षार्थ करते थे, तथा जिसको प्रभु ने गुरु अर्थात् ऊंच as करके माना उन्हों का भोगवंश स्थापन किया ( वह राजगुरु प्रोहित बजते हैं ) वा १० भोजक जाति, २ जो ऋषभदेवजी के मित्र या निज परवार उन्हों का राजन्यवंश स्थापन किया, ३ शेष सर्व प्रजा का क्षत्रिय वंश स्थापन किया (४) उग्र १, भोग २, राजन्य ३, क्षत्रिय ४, ऐसे ४ वर्ण की स्थापना करी, गृह हट्ट पुलादि बांधने का शिल्प जिसको सिखाया वह वार्द्धकी सूत्रधार शिलावटादि नाना भेद से प्रचलित हुये ।
अनादि आहार प्रभुने इस कारण प्रवर्ताया, काल दोष से कल्पवृक्षों के फल का अभाव हुआ तब लोक कंद, मूल, पत्र, फूल, फल खाने लगे कई एक इत्तु का रस पीने लगे तथा नाना जात के कच्चा अन्न खाने लगे लेकिन वह उन्हों के उदर में जीर्ण नहीं होने लगा, पीडा होने से ऋषभ नाथ को अपना दुःख निवेदन करने लगे । तव प्रभु ने कहा इस अन्न को मसल तूंतडे दूर कर खाया करो जब वह भी नहीं पचने लगा तब जल में. मिगा के खाना कहा जब वह भी नहीं पचा तब कूट कर खाना बतलाया ऐसे नानाविध बतलाने पर भी वह नहीं जीर्ण होने लगा इस अवसर में
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