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लोकव्यवस्था
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सहकारी कारण कहा जाता है । घटमें मिट्टी उपादान कारण है; क्योंकि वह स्वयं घड़ा बनती है, और कुम्हार निमित्त है; क्योंकि वह स्वयं घड़ा तो नहीं बनता, पर घड़ा बननेमें सहायता देता है। प्रत्येक सत् या द्रव्य प्रतिक्षण अपनी पूर्व पर्यायको छोड़कर उत्तर पर्यायको धारण करते हैं, यह एक निरपवाद नियम है । सब प्रतिक्षण अपनी धारामें परिवर्तित होकर सदृश या विसदृश अवस्थाओंमें बदलते जा रहे हैं। उस परिवर्तन-धारामें जो सामग्री उपस्थित होती है या कराई जाती है उसके बलाबलसे परिवर्तनमें होनेवाला प्रभाव तरतमभाव प्राप्त करता है । नदीके घाटपर यदि कोई व्यक्ति लाल रंग जलमें घोल देता है तो उस लाल रंगकी शक्तिके अनुसार आगेका प्रवाह अमुक हद तक लाल होता जाता है,
और यदि नीला रंग घोलता है तो नीला। यदि कोई दूसरी उल्लेख योग्य निमित्तसामग्री नहीं आती तो जो सामग्री है उसकी अनुकूलताके अनुसार उस धाराका स्वच्छ या अस्वच्छ या अर्धस्वच्छ परिणमन होता जाता है। यह निश्चित है कि लाल या नीला परिणमन, जो भी नदीकी धारामें हुआ है, उसमें वही जलपुञ्ज उपादान है जो धारा बनकर बह रहा है; क्योंकि वही जल अपना पुराना रूप बदलकर लाल या नीला हुआ है। उसमें निमित्त या सहकारी होता है वह घोला हुआ लाल रंग या नीला रंग। यह एक स्थूल दृष्टान्त है-उपादान और निमित्तकी स्थिति समझनेके लिए।
मैं पहिले लिख आया हूँ कि धर्मद्रव्य,अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य और शुद्ध जीवद्रव्यके परिणमन सदा एक-से होते हैं। उनमें बाहरी प्रभाव नहीं आता; क्योंकि इनमें वैभाविक शक्ति नहीं है। शुद्ध जीवमें वैभाविक शक्तिका सदा स्वाभाविक परिणमन होता है। इनकी उपादानपरम्परा सुनिश्चित है और इनपर निमित्तका 'कोई बल या प्रभाव नहीं होता। अतः निमित्तोंकी चर्चा भी इनके सम्बन्धमें व्यर्थ है । ये सभी द्रव्य निष्क्रिय हैं। शुद्ध जीवमें भी एक देशसे दूसरे देशमें प्राप्त होने रूप क्रिया नहीं होती। इनमें उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक निज स्वभावके कारण अपने अगुरुलघुगुणके सद्भावसे सदा समान परिणमन होता रहता है। प्रश्न है सिर्फ संसारी जीव और पुद्गल द्रव्यका । इनमें वैभाविकी शक्ति है। अतः जिस प्रकारको सामग्री जिस समय उपस्थित होती है उसकी शक्तिकी तरतमतासे वैसेवैसे उपादान बदलता जाता है । यद्यपि निमित्तभूत सामग्री किसी सर्वथा असद्भूत परिणमनको उस द्रव्यमें नहीं लाती; किन्तु उस द्रव्यके जो शक्य-संभाव्य परिणमन हैं, उन्हींमेंसे उस पर्यायसे होनेवाला अमुक परिणमन उत्पन्न हो जाता है। जैसे प्रत्येक पुद्गल अणुमें समान रूपसे पुद्गलजन्य यावत् परिणमनोंकी योग्यता है। प्रत्येक अणु अपनी स्कन्ध अवस्थामें कपड़ा बन सकता है, सोना बन सकता
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